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________________ प्रश्नों के उत्तर पड़ता है। इस तरह यह व्रत भी अणुव्रतों में गुण की अभिवृद्धि करने वाला है। . उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत दो प्रकार का कहा गया है.१-भोजन और २-कर्म (व्यापार) * । भोजन के अतिरिक्त और भी पदार्थ हैं, जो उपभोग-परिभोग के काम में आते हैं । फिर भी यहां जो . भोजन का उल्लेख किया गया है, वह केवल मुख्यता की दृष्टि से समझना चाहिए । भोजन जीवन के लिए सब से पहली. ग्रावश्यकता है, इसलिए इसे मुख्य रूप से गिनाया गया है, अन्य साधनों को इस के अन्तर्गत समझ लेना चाहिए । उक्त व्रत को धारण करने वाले साधक सचित्त पदार्थों का सर्वथा त्याग भी कर सकते हैं। यदि किसी ने सचित्त पदार्थों का सर्वथा त्याग कर दिया है तो इस व्रत का निर्दोषता से परि- . पालन करने के लिए पांच वातों से सदा बच कर रहना चाहिए- .. - १- सचिताहार- सजीव पदार्थों का कच्ची सब्जी आदि का उपभोग नहीं करना चाहिए। २- सचित्त-प्रतिवद्धाहार- ऐसे अवित पदार्थ को भी खाने के काम में नहीं लेना चाहिए जो सचित पदार्थ से प्रावेष्ठित है। जैसी आम की गुठलो सहित ग्राम चूसना या बोज सहित ही अन्य फलों को खाते रहना। ... ... ३. अपक्व-औषधि भक्षण-- अपरिपक्व पदार्थ को खाना । ४. दुष्पक्च-औषधि भक्षण-- जो पदार्थ बहुत अधिक पक गया है या बुरी तरह पकाया गया है, उस पदार्थ को नहीं खाना चाहिए। mimmimiimminunniinimin. * उपभोग-परिभोग:परिमाण-वए दुविहे पण्णत्ते तंजहा-भोयणाम्रो य, कम्मनो य । .. ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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