SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८९ एकादश अध्याय में संयम को बढ़ावा देने के लिए है, सन्तोषवृत्ति धारण करने के लिए है । स्वपत्नी के साथ भी विषय-वासना में डूबे रहना व्रत की दृष्टि 'से एवं भारतीय संस्कृति की दृष्टि से पतन का कारण है। प्रस्तुत व्रत को सुरक्षित रखने के लिए श्रावक को ५ बातों से सदा बचे रहना चाहिए * १- किसी स्त्री या पुरुष को रखैल के रूप में रख कर उसके साथ काम भोग का सेवन करना । २- परस्त्री, अविवाहित नारी एवं वेश्या के साथ तथा श्राविका को पर पुरुष एवं अविवाहित व्यक्ति के साथ विषयेच्छा को पूरा करना । ३- प्रप्राकृतिक साधनों से विषय-भोगों का सेवन करना तथा उसे बढ़ावा देने वाले साधनों का इस्तेमाल करना । + ४- दूसरों के विवाह संबंध जोड़ाना | $ * जिसके साथ विधि पूर्वक विवाह नहीं किया है, परन्तु अपनी वासना की पूर्ति के लिए रख छोड़ा है । + जोड़े के रूप में नाच कर वासना का प्रदर्शन करना, अश्लील साहित्य पढ़ना, काम-वासना को उत्तेजित करने वाली फिल्मों को देखना, वैसे फिल्मी गाने गाना, तथा एडवरटाइजमेंट के रूप में नारी के रूप तथा सौंदर्य का भद्दा चित्रण करना, जिससे अपनी एवं दूसरों की काम-पिपासा जाग उठे । $ उक्त चीयें अतिचार का नाम पर विवाह करणे' है । श्राचार्यों ने इस + *** " का अर्थ दूसरे का विवाह-संबंध करवाना किया है। कई टीकाकारों ने भी यही अर्थ किया है । ‘परविवाहकरणे- परेषां स्वापत्य- व्यतिरिक्तानां जनानां विवाहकरणं कन्या-फल-लिप्सया,स्नेह-संबंधाऽऽदिना वा परिणयनंपरविवाह करणम् अर्थात्-अपनी सन्तान को छोड़ कर स्नेह-संबंध या कन्या-प्राप्ति की इच्छा स दूसरों का विवाह करवाना । 'परकीयापत्यानां स्नेहादिना परिणायने अर्थात्
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy