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________________ A . .. .. ..... .... . . .. . ... प्रश्नों के उत्तर ४८६ है। सशक्त प्रात्मा ही इसे पूर्णतः स्वीकार कर सकता है और वही इसका ठीक तरह से परिपालन कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति इस मार्ग पर आसानी से नहीं चल सकता। इसलिए साधु एवं श्रादक के लिए अन्य व्रतों की तरह इस बात के भी दो विभाग कर दिए गए हैं। साधु के लिए पूर्णतः ब्रह्मचर्य पालन करने का विधान है, परन्तु गृहस्थ . . के लिए जीवन को संयमित, नियमित एवं मर्यादित बनाने की बात कही गई है । श्रावक के लिए भी यह जरूरी है कि वह विषय-वासना का पूर्णत: त्याग नहीं कर सकता है तो उसे केन्द्रित कर ले । या यो..... कहिए श्रावक स्व पत्नी के अतिरिक्त और श्राविका स्व पति के अतिरिक्त अपनी वासना को न फैलने दे। .. इसका यह अर्थ नहीं है कि पति-पत्नी का संसर्ग निर्दोष है और वे इस प्रवृत्ति के लिए खुले हैं । संयुन क्रिया हर हालत में सदोप है। हां, उक्त प्रवृत्ति से वन्धने वाले कर्म में अन्तर हो सकता है। क्योंकि ... वन्ध क्रिया पर नहीं; भावना या परिणामों को धारणा पर आधारित है। यदि विषय भोगों में अधिक आसक्ति है तो वन्ध प्रगाढ़ होगा . और प्रासक्ति कम है तो बन्ध हल्का होगा: श्रावक इस बात को . जानता है, इसलिए वह वैपयिक प्रवृत्ति में भी विवेक को सामने रख कर चलता है। श्रावक अपनी पत्नी के साथ और श्राविका स्व पति के साथ स्वच्छन्दता से क्रीड़ा नहीं करते, परन्तु पति-पत्नी दोनों एक - दूसरे में सन्तोष वृत्ति को स्वीकार करते हैं। वासना के वेग अत्यधिक .. __ होने पर वे वैषयिक क्रिया में प्रवृत्त होते हैं, परन्तु उस समय भी वें अपने आप को भूल नहीं जाते और न उक्त क्रिया को आनन्द रूप .. समझ कर उसमें आसक्त ही होते हैं । वे उसका सेवन सिर्फ दवा के .. रूप में करते हैं । प्रौषध का उपयोग बीमारी के समय किया जाता है, न कि स्वस्थ अवस्था में और बीमारी के समय भी मर्यादित रूप में
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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