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________________ . . .४६९............ एकादश अध्याय मर गया। इस तरह की और भी अनेकों घटनाएं घटती रहती हैं । बिना छना हुमा पानी पीने से धर्म, अहिंसा, स्वास्थ्य आदि सभी दृष्टियों से नुकसान ही नुकसान है। अतः भूल कर भी बिना छना पानी उपयोग में नहीं लानी चाहिए। ..... .. . । यह हम पहले ही बता चुके हैं कि गृहस्थ जीवन में पूर्णतः प्रारम्भ-समारम्भ का त्याग कर सकना असंभव है। अतः उसे ऐसे कार्यों से बचना चाहिए, जिनमें स जीवों को हिंसा होती है। ऐसी वस्तुओं का उपयोग भी उसे नहीं करना चाहिए जो. महारम्भमहान हिंसा से तैयार की गई हैं। यह सत्य है कि उसके लिए उपभोस्ता स्वयं हिंसा नहीं करता, परन्तु यह भी सत्य है कि. वह हिंसा उपभोक्ता के लिए ही की जाती है। यदि उक्त वस्तुओं के.खरीददार एवं उपभोक्ता ही न हों तो कोई भी व्यापारी उक्त वस्तुओं को • तयार नहीं करेगा । अस्तु. उपभोक्ता महारम्भ से निर्मित वस्तु का उपयोग करके उस हिंसा से बच नहीं सकता । यही कारण है कि श्रावक न स्वयं जान-बूझ कर निरपराधी त्रस जोवों की हिंसा करता है और न महारम्भ से निमित वस्तु का उपयोग करता है। उदाहरण के तौर पर चमड़े को कुछ चीजों में, मिल के बढ़ियां वस्त्रों एवं रेशम के वस्त्रों में अनेकों पशु एवं कीड़ों को हिंसा होती हैं। . अच्छे और मजबूत माने जाने वाले अनेक किस्म के बूट, हैंडवेग, घड़ी. के पट्ट आदि जीवितं पशुओं को मार कर उन के चर्म से बनाए जाते हैं । उन्हें मारने से पहले लाठियों से बुरी तरह मारा जाता है, जिससे उनका चमड़ा फूल जाता है। इस तरह जूतों एवं अन्य हैंडवेगं आदि को कोमल एवं चमकदार बनाने के लिए निर्दयता के साथ गाय,भैस आदि पशुओं का वध किया जाता है । अधिकं मुलायम चमड़ा प्राप्त करने के लिए पशु के नवजात बच्चों का तथा मर्भ में स्थित बच्चों का .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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