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________________ ४६७ एकादश अध्याय समय भी उन्होंने रात को भोजन नहीं किया । श्रतः भारतीय संस्कृति के सभी विचारकों ने रात्रि भोजन को त्याज्य एवं हेय माना है । २ आयुर्वेद के सिद्धांतानुसार भी रात्रि को भोजन करना हानिप्रद है । क्योंकि स्वास्थ्य की दृष्टि से भोजन करने के तीन घण्टे पश्चात् शयन करना चाहिए। रात्रि को भोजन करने वाला व्यक्ति इस नियम का परिपालन नहीं कर पाता। क्योंकि लोग रात को खाना खाते ही तुरन्त लेट जाते हैं । इस से शरीर में अच्छी तरह हरकत नहीं हो पानी और ठीक तरह हरकत नहीं होने से भोजन का पाचन ठीक नहीं होता और न उस का वैसा रस ही बन पाता है । यही 'कारण है कि ग्रांज अधिकांश लोगों को प्रपचावट और बदहजमी का रोग हो जाता है । अस्तु, धर्म, स्वास्थ्य आदि सभी दृष्टियों से रात्रि को भोजन करना हितकर हैं । यह आप प्रतिदिन देखते हैं कि पक्षी भी रात्रि को खाते-पीते नहीं है । इतना बड़ा दिन होते हुए भी रात को खाना इन्सान का काम नहीं है। रात को खाने वाले को हमारे यहां निशाचर कहते हैं। अर्थात् रात्रि में खाने वाले मनुष्य नहीं, • राक्षस होते हैं। राक्षस का अर्थ है - दया-विहीन हृदय वाले व्यक्ति । रात को वही व्यक्ति खा सकता है, जिसके हृदय में ग़रीब, असहाय एवं पामर प्राणियों- कोट-पतंगों के जीवन के प्रति दया, करुणा एवं सहृदयता की भावना नहीं है। कुछ वर्ष पहले जैनों में रात्रिभोजन को परम्परा बहुत कम थी। यहां तक कि विवाह-शादी में भी बारात वालों को रात में भोजन नहीं करवाते थे । परन्तु प्राजकल मर्यादा का यह बांध टूटसा गया है। जैन समाज में इस नियम में बहुत शिथिलता आगई है । 'श्राज कल पढ़े लिखे नवयुवक तो रात को भोजन करने में जरा भी नहीं हिचकते । माज प्रायः जैन लोग अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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