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________________ प्रश्नों के उत्तर पूरा करना हिंसा है। प्रश्न- किसी प्राणी को बचाने का प्रयत्न करते हुए भीयदि उस प्राणी के प्राण रक्षक के हाथ में निकल जाएं या अपनी ओर से सावधानी वर्तते हुए भी यदि किसी कारण से अचानक उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका पाप रक्षक को लगेगा ? उत्तर- नहीं। धर्म और पाप किसी प्राणी के मरने और जी उठने पर... प्राधारित नहीं है । परन्तु, वह विवेक और अविवेक.पर आधारित है। प्रत; जैन धर्म साधक को प्रत्येक कार्य विवेक-पूर्वक करने की बात कहता है । विवेक एवं यतना पूर्वक कार्य करते हुए यदि किसी प्राणी - के प्राणों का नाश हो भी जाएं तो उसे पाप कर्म का बन्ध नहीं होता.. और अविवेक एवं प्रयतना से कार्य करते हुए किसी प्राणी का वध न .. भी हो तब भी उसे पाप कर्म का बन्ध होता है । इसका कारण यह है ... कि विवेक-पूर्वक कार्य करने वाले व्यक्ति के मन में दया और करुणा का भाव भरा रहेगा,वह प्रत्येक प्राणी की सुरक्षा करने का ध्यान रखे.... गा, और अविवेकी व्यक्ति में यह भावः नहीं रहता। अतः दोनों के . 'वन्ध में इतने बड़े भारी अन्तर का यही कारण है। जैसे एक डाक्टर : शुद्ध एवं निस्वार्थ भाव से एक रोगी का औपरेशन कर रहा है। पूरी .. ... सावधानी रखते हुए भी रोगी स्वस्थ नहीं होता, मर जाता है। तब 6. भी उस के मरने का पाप डाक्टर को नहीं लगता। क्योंकि उसका भाव उसे मारने का नहीं, बल्कि बचाने का था । और एक रोगी - डाक्टर के पास आता है। वहीं रह कर इलाज कराना चाहता है। रोगी के पास काफी धन है और उस पूरे धन पर कब्जा करने के भाव से डाक्टर उसे समाप्त करने के लिए दवा के नाम से जहर दे देता है
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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