SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -४५९ एकादश अध्याय सांप, बिच्छू आदि योंही राह चलते व्यक्ति को नहीं काटते । वे मनुष्य को उसी परिस्थिति में काटते हैं जबकि मनुष्य के पैर या किसी अंग से उनका शरीर दब जाता है, उस समय उन्हें ऐसा लगता है : कि हमारे ऊपर प्राघात किया जा रहा है, अतः उस श्राघात से बचने के लिए वे अपने डंक या दान्तों का प्रयोग करते हैं । अतः यह समझना नितान्त असत्य है कि सांप, बिच्छू आदि मानव के शत्रु हैं । क्योंकि शत्रु का काम सोधा श्राक्रमण करने का है, परन्तु सांप, बिच्छू श्रादि जन्तुनों ने आज तक किसी पर सीधा श्राक्रमण किया हो, ऐसा देखा-सुना नहीं गया। यदि मनुष्य देख कर संभल कर छोटे-मोटे " सभी जन्तुओं को बचाता हुआ चले तो सांप, बिच्छू आदि के विषाक्त डंक से वह सहज ही बच जाता है। इसी तरह सिंह आदि हिंसक जन्तु भी उसी हालत में मनुष्य पर आक्रमण करते हैं, जबकि वे भूखे हों, अन्यथा वे आक्रमण नहीं करते । इस लिए सिंह, सांप, बिच्छू प्रादि को बिना किसी कारण के मारने या कष्ट एवं पीड़ा पहुंचाने का प्रश्न ही नहीं उठता । P i यदि थोड़ी देर के लिए हम उन्हें शत्रु मान भी लें तब भी उन्हें मारने की बात उचित नहीं ठहरती । क्योंकि यदि शत्रु को मारने का सिद्धांत हम न्याय संगत मान लेते हैं, तो जैसे मनुष्य को सिंह आदि हिंसक पशुओं को मारने का अधिकार है, उसी तरह सिंह श्रादि द्वारा मनुष्यों का घात करना भी उचित मानना होगा | क्योंकि उनकी निगाह में मानव उनका कट्टर शत्रु है। इस के सिवाय, मनुष्य को बहुत से मनुष्य भी शत्रु मिल जाएंगे। इस तरह शत्रु को समाप्त करने का सिद्धांत मान लिया जाए तो संसार में कोई भी प्राणी जिन्दा नहीं रह सकेगा। सारे संसार में मार-काट मच जायगी, शांति की व्यवस्था भंग हो जायगी और मनुष्य मनुष्य न रह कर जंगली भेड़िये से भी
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy