SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ..... एकादश अध्याय .. . ... . . " . स्थिति में जव समझौते का कोई उपाय शेष नहीं रहा तब चेटक ने - - कौणिक का सामना किया और इस संघर्ष में दोनों पक्ष के एक करोड़ - अस्सी लाख व्यक्ति मारे गए-1 इस युद्ध के समय चेटक ने अपने देश के - नागरिकों का भी प्राह्वान किया था। राजा चेटक स्वयं जैन था और उसके द्वारा आमंत्रित वर्णनागनतुग्रा भी जैन श्रावक था। वर्णनागनतुआ ने जीवन पर्यन्त के लिए वेले-बेले को तपस्या का व्रत अर्थात् दोदो दिन के अंतर से भोजन स्वीकार करने की प्रतिज्ञा ले रखी था। जिस दिन उसे युद्ध में शामिल होने का निमन्त्रण मिला; उस दिन उसके दो दिन की तपश्चर्या का पारणा था। फिर भी उसने खाने पीने की .. परवाह नहीं की, देश की सुरक्षा के लिए बिना खाए पीए तेले की तपस्या करके वह युद्ध क्षेत्र की ओर चल पड़ा। इन सव उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा अपनी ओर से किसी पर आक्रमणं करने की इजाजत नहीं देती । परन्तु, वह देश, परिवार एवं स्वयं पर मुसीवत या संकट आ पड़ने पर उसे कायर एवं वुर्जादल बन कर घर में बैठने की वात भी नहीं सिखाती। क्योंकि जहाँ डर या भय है वहां अहिंसा नहीं रहती। अहिंसक सदा निर्भय रहता है, यहां तक की मृत्यु के समय भो.वह कांपता नहीं, थर्राता नहीं । महात्मा गांधी ने भी एक जगह लिखा है कि एक हिंसक अंहिसंक वन सकता है, परन्तु एक कायर अहिंसक नहीं बन सकता। उन्होंने इस बात का स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है "यदि मेरे से कोई कायरता और हिंसा इन दो में से एक चुनने का परामर्श ले तो मैं उसे हिंसा के मार्ग · को चुनने की बात कहूंगा-... I do believe that, where there is only.a choice Setween cowardiće and violence, I would advise "
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy