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________________ ४५५ एकादश अध्याय हेतु किसी प्राणी का वध नहीं करता, वह दूसरों के अधिकारों का हरण नहीं करता, वह किसी भी राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि उस के राष्ट्र पर कोई आक्रमण करे उस समय वह चुपचाप खड़ा तमाशा ही देखता रहता है। हां, इतना अवश्य है कि वह शांति एवं सद्भावना के साथ उस समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करता है । यथासंभव वह युद्ध को टालने का प्रयत्न करता है, समझौते के मार्ग को अपनाता है, इतने पर भी शत्रु नहीं .. मानता है तो वह उसका डट कर मुकाबला करता है। . जनों की अहिंसा को कायरता का नाम देना भारी भूल है । जन मार्ग शान्ति एवं वीरता का मार्ग है। भारत की तटस्थता की नीति जैन ... अहिंसा से बरावर मेल खाती है। क्योंकि युद्ध राष्ट्र के विकास को रोकने वाला है। देश एवं विश्व की शांति को भंग करने वाला है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने वाला है। अहिंसा के समर्थकों को बात छोड़िये । युद्ध के खिलाड़ी पाश्चात्य नेता भी इस बात को मानने लगे हैं कि युद्ध से समस्याएं नहीं सुलझ सकतीं। रूस के मान्य प्रधान मन्त्री खरोश्चेव के ये शब्द बड़े महत्त्वपूर्ण हैं कि विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि नभ,जल और स्थल सभी तरह की सेनाओं को समाप्त कर दिया जाए तथा अणुशस्त्रों एवं अन्य विस्फोटक हथियारों को समुद्र में फेंक दिया जाए। अमरीका के राष्ट्रपति प्राइजनहॉवर ने भी इस बात को शाब्दिक रूप से मान .. लिया है कि विध्वंसक शस्त्रों का नाश करके ही शान्ति को कायम रखा जा सकता है। प्रस्तु, आज के वैज्ञानिक युग में अहिंसा को काय रता की नीति कहना उचित नहीं है। भारत के प्रधान मन्त्री पं० । . . जवाहर लाल नेहरू इस बात के पूरे समर्थक हैं कि युद्ध मानवता का . विनाशक है। विश्व के किसी भी भाग में लड़े जाने वाले युद्ध को वे ...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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