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________________ ~~..दशम अध्याय wimwear जो माल दिखाते हैं, वही पैक करते हैं । परन्तु भारतियों में प्रामाणिकता की बहुत कमी है। इसी से व्यापारिक जीवन में उनका विश्वास करना खतरे से खाली नहीं समझा जाता। .. चोरी भी चार तरह की बताई है- १-द्रव्य, २-क्षेत्र, ३-काल और ४-भाव । द्रव्य की चोरी दो प्रकार की है- १-सजीव और २निर्जीव । पशु-पक्षी, अनाज, सब्जी आदि की चोरी करना सजीव द्रव्य की चोरी है और सोना चांदी, आभूषण, जवाहरात, रुपये-पैसे आदि की चोरी करना निर्जीव द्रव्य की चोरो है । किसी व्यक्ति के घर, खेत जमीन, एवं सीमा आदि पर कब्जा करना क्षेत्र की चोरी है । वेतन, किराया व्याज आदि के देन-लेन में समय की कमी करना काल की चोरी है। किसी कवि, लेखक एवं वक्ता के भावों को लेकर उस पर अपना नाम देना तथा अपनी आत्म शक्ति को भोगों में लगाना, वीत... राग की प्राज्ञा का उल्लंघन करना भाव चोरी है। इस तरह सभी • तरह की चोरिये आत्मा का पतन करने वाली हैं। इसलिए मनुष्य . को सदा उससे बचकर रहना चाहिए। नीतिकारों ने भी इस बात पर जोर दिया है कि चोरी करके दूसरे के धन पर गुलछरें उड़ाने की अपेक्षा भीख मांग कर खाना अच्छा है। .:.:..:. . "वर भिक्षायित्वं न च परधनास्वादनसुखम् ।".... चौर्य कर्म में प्रवृत्त व्यक्ति का कोई विश्वास नहीं करता । उसका मन भी सदा अशान्त बना रहता है। वह रात-दिन आत्त-रौद्र व्यान - में डूबा रहता है। और जिसके माल का अपहरण करता है उसके चित्त को भी दुःख होता है । कभी-कभी तो दुःख इतना अधिक बढ़ जाता है कि हार्ट फेल हो जाता है । इसलिए धन को ग्यारहवां प्राण कहा है। प्रस्तु, धन का अपहरण भी प्राणों का अपहरण है, दूसरे के.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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