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________________ तत्त्व-मीमांसा द्वितीय अध्याय प्र० - संसार में तत्त्व (पदार्थ) कितने हैं ? उ० जैन दर्शन मे तत्त्वो की संख्या नव मानी है । ग्रागम मे नव तत्त्वो का उल्लेख मिलता है । और तत्त्वार्थ सूत्र मे सात तत्त्वो का उल्लेख किया है। परन्तु, इस से मान्यता मे कोई अन्तर नही आता । केवल संख्या गिनने का अन्तर है । जीव, जीव, पुण्य, पाप, ग्रास्रव, सवर, निर्जरा, वध और मोक्ष ये नव तत्त्व है । सात तत्त्व स्वीकार करने वाले पुण्य-पाप को अलग नही गिनते । इसका अर्थ यह नही है कि वे पुण्य-पाप को मानते ही नही । वे भी पुण्य-पाप को स्वीकार करते है । परन्तु उस की गणना श्रास्रव या बंध तत्त्व मे कर लेते है। शुभ और अशुभ परिणामो से शुभ-अशुभ कर्मो का वन्ध होता है । ये शुभाशुभ परिणाम भाव पुण्य-पाप है । और उन से वन्धने वाले शुभाशुभ कर्म द्रव्य पुण्य - पाप हैं । प्रत सैद्धांतिक दृष्टि नव और सात तत्त्व मानने मे कोई अन्तर नही पडता । यदि मूल तत्त्व नव मान लेते है तो फिर किसी तत्त्व के अवान्तर भेद नही करने पडतें है और सात की सख्या मानते हैं तो वन्ध के दो अवान्तर भेद करके नव की गणना को पूरा कर दिया जाता है । चाहे किसी भी तरह से माने जैन मान्यता के अनुसार तत्त्वो की संख्या नव है । इस में ससार के सभी + शुभ पुण्यस्य, अशुभ पापस्य । -तत्त्वार्थ सूत्र, ६,३-४.
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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