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________________ २६ ~~ ~ ~~ ~ ~~ ~ प्रश्नों के उत्तर ...... ormmmmmmmmmmm पहले भग मे विधि की स्थापना की गई है और दूसरे मे उसका प्रतिपेध किया गया है। तीसरे भग मे क्रमश दोनो का प्रतिपादन किया गया है। चौथा भग विधि और निषेध को युगपत् प्रतिपादन करता है। और युगपत् प्रतिपादन करना वाणी की शक्ति से बाहर है, अत इस भग को अवक्तव्य भग कहते है। पाचवॉ भग विधि और युगपत् विधि - निषेध का प्रतिपादन करता है । यह भग पहले और चौथे भग के सयोग से वना है। छठा भग निषेध और अवक्तव्य का प्रतिपादन करता है । अत. वह दूसरे और चौथे के सयोग से बना है। सातवां भग उभयात्मक और प्रवक्तव्य का प्रतिपादन करता है। अत वह तीसरे और चौथे के सयोग से बना है। . . इस तरह जब हम कहते हैं कि कथचित् घट है तो उसका यह अर्थ नही है कि घट के पूरे रूप के सबध मे हमे सशय है। यह कथन समय की भाषा मे नही, निश्चय की भाषा मे है । जैनो ने वस्तु का विवेचन स्याद्वाद की भाषा मे किया है। अत वे एक अपेक्षा को ले कर प्रतिपादन करते हैं । परन्तु उस अपेक्षा मे उन्हें किसी तरह का सशय नही है। पूरे निश्चय के साथ वे वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं । घट कथचित् है,इसका अर्थ इतना ही है कि वह किसी अपेक्षा से है । क्योकि 'है' के साथ नही है' यह भी जुडा हुआ है। यदि 'है' केवलं इतना ही मानेगे, नही है' का सर्वथा तिरस्कार कर देगे तो ससार के सभी पदार्थ घट रूप हो जाएंगे। फिर घट-पट का भेद रह ही नही जायगा। अत. कथचित् या स्यात् कहने का तात्पर्य यह है कि घट स्वरूप की अपेक्षा से है और पर रूप की अपेक्षा से नही है, इसी बात को दार्शनिक भाषा मे यो कह दीजिए कि घट घटत्व रूप से सत् है और पटत्व रूप से असत्
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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