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प्रटनी के उत्तर
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अत. वह अनित्य भी है। इसी प्रकार लोक की सान्तता-अनन्तता का उत्तर देते हुए कहा गया है कि लोक चार प्रकार का है- १-द्रव्य लोक,२- क्षेत्र लोक,३-काल लोक,४- भाव लोक । द्रव्य की अपेक्षा लोक द्रव्य एक है, अत वह सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से लोक असख्यात योजन कोटा-कोटि विस्तार और परिक्षेप वाला कहा गया है, अत वह सान्त है । काल से मदा विद्यमान है, अत. वह घ्र व, नित्य, गाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित है। उस का कही अन्त नहीं है। भाव की अपेक्षा से लोक के अनन्त वर्णपर्याय, गवपर्याय, रसपर्याय, और स्पर्गपर्याय हैं, अत वह अनन्त है। इस तरह द्रव्य और क्षेत्र से लोक सान्त है, तो काल और भाव की अपेक्षा से अनन्त है।
इसी तरह जीव की नित्यता-अनित्यता के सवव मे गौतम द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान महावीर ने कहा कि हे गौतम! जीव नित्य भी है और अनित्य भी है। द्रव्य की अपेक्षा से जीव नित्य है. गाश्वत है, क्योकि वह कभी भी जीव से अजीव नही होता । परन्तु उसकी ज्ञान, दर्शन आदि पर्यायें प्रतिक्षण वदलती रहती है,अत. पर्यायपरिवर्तन की अपेक्षा से वह अनित्य है। इस तरह जीव नित्यानित्य है। अन्य प्रश्नो के उत्तर में भी भगवान महावीर की यही भापा रही है । उन्होने बुद्ध की तरह किसी भी प्रश्न को अव्याकृत कह कर उस की उपेक्षा नहीं की। प्रत्येक प्रश्न- का सापेक्ष भापा मे समाधान किया और सारी दार्शनिक गुत्थियो को सुलझाने के लिए समन्वय का मार्ग प्रस्तुत किया। इस तरह हम देख चुके हैं कि तथागत बुद्ध के विभज्यवाद से श्रमण भगवान् महावीर का विभज्यवाद अधिक विस्तृत और स्पष्ट था । उसमे सशय, अस्पष्टता का जरा भी धुंधलापन नही था।