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________________ १५ प्रथम अध्याय शीलन करने से यह स्पप्ट हो जाता है कि आगमकार ने कितने सुन्दर सरस और सरल ढग से सिद्धांत का निरूपण किया है । चित्रविचित्र पख वाले पुसकोकिल का अर्थ स्याद्वाद या अनेकान्तवाद ही है । हादगाग सूत्रो मे आदि से अन्त तक स्याद्वाद भाषा का ही प्रयोग हुया है । भगवान् की वाणी एक वर्ण के पख वाली कोकिल के समान नही, चित्रविचित्र पख युक्त कोकिल की तरह है। जहा एक ही वर्ण के पख होते है वहा एकात होता है और एकातवाद वस्तु के वास्तविक स्वरूप का वर्णन करने में असमर्थ है, अत भगवान् महावीर को एकान्त इप्ट नहीं था। दूसरी बात यह है कि वस्तु अनेक गुण युक्त है और उसके अनेक गुणो को एक दृष्टि से नहीं अपितु अनेक अपेक्षानो से ही जाना जा सकता है। वस्तु अनेक गुण युक्त हे अत. उस को जानने वाला ज्ञान भी अनेक अपेक्षाओं से युक्त होता है। तीर्थकर सर्वन बनने के बाद केवलज्ञान ने दुनिया में स्थित सभी वस्तुओं को भलीभाति जानते-देखते हैं। अत. केवलनान अनेकान्त या स्याद्वाद पूर्वक होता है और यह स्वप्न भी भगवान् ने केवलजान होने के पूर्व ही देखा था। अस्तु, इस उदाहरण के द्वारा यह बताया गया है कि भगवान् महावीर ने तत्त्वो का निस्पण अनेकान्त दृष्टि से किया है । प्रागमो मे जो त्रिपदी- उत्पाद, व्यय और प्रौव्य का वर्णन अाता है, यह अनेकान्तवाद ही है। ऐसा माना जाता है कि तीर्थकरी को केवलजान होने के बाद जब गणवर अपनी गकारो का समाधान प्राप्त करके उनके पास दीक्षित होते हैं तब पहले उन्हें उक्त विपदी का उपदेश देते हैं और उसी के आधार पर वे गणवर चौदह पूर्व का ज्ञान प्राप्त कर लेते है । अस्तु, चौदह पूर्व या यों कहिए ममस्त पदार्थों के जान का मूल त्रिपदी मे सन्निहित है 1 भगवान महावीर ने इसी का प्रतिपादन किया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दो मे कहा कि प्रत्येक द्रव्य
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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