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________________ प्रश्नों के उत्तर ३५६ को स्वीकार करता है और चार्वाक दर्शन मात्मा को शरीर से अलग स्वतन्त्र तत्त्व एवं शरीर के बाद भी उसके स्थित रहने को नही मानता। चार्वाक दर्शन पदार्थों के स्वरूप को जानने-देखने के लिए प्रत्यक्ष ज्ञान को ही प्रमाण मानता है, अनुमान, आगम आदि परोक्ष ज्ञान को प्रमाण नहीं मानता। परन्तु, जैन दर्शन प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनो ज्ञानो को प्रमाण मानता है । वह अनुमान, उपमान, पागम आदि प्रमाणो को भी स्वीकार करता है। क्योकि केवल चक्षु प्रत्येक पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को जानने मे समर्थ नही है । वह स्थूल होने के कारण भौतिक पदार्थों के स्थूल रूप को मर्यादित रूप से जान-देख सकती है। कई भौतिक पदार्थ इतने सूक्ष्म होते है कि उन्हें प्रांखो से देख सकना कठिन ही नही, असभव है । जैसे- परमाणु को आखो से नही देखा जा सकता, अांखो से ही नहीं, सूक्ष्म दर्शक यत्र (Microscope) के सहयोग से परमाणु के दर्शन नही हो सकते । फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि आंखो से दिखाई नही देने के कारण परमाणु नही है । क्योकि उसका कार्य रूप से अनुभव होता है। परमाणुओ के मिलने एव बिछड़ने पर ही भौतिक वस्तुओ का निर्माण एव विध्वस होता है । समस्त भौतिक पदार्थो का मूल आधार परमाणु है। दुनिया के तमाम भौतिक पदार्थ- जिनका इन्द्रियो द्वारा ग्रहण किया जा सकता है, अनन्त-अनन्त परमाणुओ के स्कन्ध रूप हैं। क्योकि अनन्त परमाणुरो का स्कन्ध ही चक्षु ग्राह्य हो सकता है । इससे स्पष्ट है कि परमाणु के स्कन्ध रूप कार्य को देख कर उसके कारण परमाणु के अस्तित्व का सहज ही अनुमान लगा सकते है । चार्वाक भी परमाणु को तो मानता ही है, अत, आखो से दृष्टिगोचर होने वाले प्रत्यक्ष के अतिरिक्त अनु
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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