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प्रश्नो के उत्तर
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है । अतः एक विज्ञान का मरण और दूसरे विज्ञान का जन्म होता है। जिस प्रकार ध्वनि और प्रतिध्वनि मे, मोहर और उसकी छाप मे, पदार्थ और पदार्थ के प्रतिविम्ब मे कार्य-कारण संबध है, उसी तरह एक विज्ञान और दूसरे विज्ञान मे तथा इस भव के मरण के समय के विज्ञान तथा अगामी भव के जन्म समय के विज्ञान मे कार्य-कारण सवध है । विज्ञान कोई नित्य वस्तु नही है। इस विज्ञान परम्परा से दूसरे भव मे उत्पन्न होने वाले मनुष्य को न पहला ही मनुष्य कह सकते है और न उसे पहले मनुष्य से भिन्न ही कहा जा सकता है।*
जिस प्रकार कपास के वीज को लाल रंग से रग देने से उस वीज का फल भी लाल रंग का उत्पन्न होगा। उसी तरह तीव्र संस्कारो की छाप के कारण अविच्छिन्न सतान से यह मनुष्य दूसरे भव मे भी अपने किए हुए कर्मों के फल को भोगता है। इसलिए जिस प्रकार डाकुप्रो से हत्या किए जाते हुए मनुष्य के टेलीफोन द्वारा पुलिस के थाने मे खवर देने से मनुष्य के अन्तिम वाक्यो से मनुष्य के मरने के बाद भी मनुष्य को क्रियाए जारी रहता हैं । उसी तरह सस्कार की दृढता के बल से मरने के अन्तिम चित्त-क्षण से जन्म लेन के पूर्व क्षण के साथ सबध होता है। वास्तव मे आत्मा का पुनर्जन्म नही होता है, परन्तु जिस समय कर्म-सस्कार अविद्या से संबद्ध होता है, उस समय कर्म को ही पुनर्जन्म कहा जाता है। इस लिए बौद्ध दर्शन में कर्म
मिलिन्दपण्ह अ २, पृष्ठ ४०-५०, तत्त्वसग्रह, कर्मफल सबध तथा लोकायत परीक्षा प्रकरण ।
$ Budhist Psychology, Page 25.' + Buddhism in translation (Warren),Page234-241