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________________ प्रश्नों के उत्तर -- - - - -- -- - - - - - नही है । * . बौद्ध विचारकों ने आत्मा को कोई स्वतन्त्र एव नित्य द्रव्य न मान कर रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और सस्कार इन पाचो स्कन्वो के समूह से प्रतिक्षण नए रूप में उत्पन्न होने वाली शक्ति मात्र माना है और उस को पुद्गल-आत्मा या विज्ञान कहा है -1 $ यह विज्ञान नदी प्रवाह की तरह (नदीसोतो वि य)-प्रतिक्षण बदलता रहता है । 1. * दुःखहेतुरहंकार आत्ममोहात्तु · वर्षत, । . , । ततोऽपि न निवर्त्यश्चेत् वर नैरात्म्यभावनां । ' ' ' . .. वोधिचर्यावतार, ९,७८ । साहंकारे मनसि न शमं . याति जन्म-प्रववो, ' ... नाहकारश्चलति हृदयात्मदृष्टौ च सत्याम् । 'अन्य गास्ता जगति भवतो नास्ति नैरात्म्यवादी, • नान्यस्तस्मादुपशमविधेस्त्वन्मतादस्ति मार्गः॥ . .. -तत्वसग्रह पजिका, पृष्ठ नात्मास्ति स्तवमानं तु कर्मवलेगाभिसस्कृतम् ।। अन्तराभवसन्तत्या कुक्षिमेति प्रदीपवत् ।। आत्मेति नित्यो ब्रवः स्वरूपतोऽविपरिणामवर्मा कश्चित पदार्थों नास्ति । कर्मभिः अविद्यादिक्लेशश्च संस्कारमापन्न पंचस्कस्वमात्रमेव, अंतराभवसन्तानक्रमेण गर्भ प्रविशति । क्षण-क्षणे उत्पद्यमानं विनश्यमानमपि तत् स्कन्वपचक स्वसतानद्वारा प्रदीप-कलिकावत् एकत्व बोधयति । - -अभिधर्म कोश ३,१८, टीका । + अमेरिका के मनोवैज्ञानिक प्रो० विलियम जेम्स Willium James ने भी विज्ञान (Consciousness) को विचार प्रवाह मानते हुए नित्य प्रात्मा के स्थान पर चित्तसन्तति (Stream of thoughts) को माना है
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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