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________________ प्रश्नो के उत्तर daw~~~~, rm..wwwwwer तथा नारी को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील थे और महावीर भौतिक एव प्राध्यात्मिक दुःख मात्र के नाश का मार्ग बता रहे थे। तथागत बुद्ध केवल दु.खो के ऊपरी पत्र-पुष्पों को काटने से व्यस्त रहे, उन्होने दु.ख को मूल जड़ को उखाड़ने का प्रयत्न नहीं किया, किंतु महावीर ने दुःख-दैन्य के पत्र-पुष्पों को समाप्त करने के साथ उसकी जड़ को भी उखाड़ फैकने का उपदेश दिया। उन्होने केवल भौतिक दुःखो के नाश की बात ही नही कही, बल्कि दुखा के मूल कारण को नष्ट करने का कारण बताया * । उनका प्रयत्न मनुष्य को यात्मा से परमात्मा बनने की राह दिखाने का था। वे बुद्ध की तरह भौतिकवादी नहीं, बल्कि अध्यात्मवादी थे। उन्होने आत्मा के अस्तित्व एव स्वरूप को स्पष्टतः जान लिया था। अतः उन्हें तथागत बुद्ध की तरह किसी भी.तत्व मे सन्देह नही था। . - यह हम ऊपर देख चुके हैं कि बौद्ध दर्शन का व्यवस्थित रूप बुद्ध के बाद का है। फिर भी हम उसके आधार पर यहा बौद्ध एव जैन दर्शन की मान्यता पर थोड़ा विचार करेंगे और देखेंगे कि उनमे कितनी साम्य एव वैषम्य है। बौद्ध दर्शन .. बौद्ध दर्शन को अनात्मवादी दर्शन कहते हैं। इसका यह अर्थ नही है कि वह आत्मा की सत्ता को नहीं मानता है । वह आत्मा को स्वोकार करता है । परन्तु आत्म स्वरूप की मान्यता मे कुछ भेद है। वैदिक दर्शन आत्मा को कूटस्थ नित्य मानते हैं । बौद्धो को, एकात नित्यवाद स्वीकार नही है । वे आत्मा के नित्यत्व को सर्वथा अस्वी- *.प्राचाराग सूत्र, श्रुत १, अध्य. ३, उद्दे. २, गाथा ४।।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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