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________________ प्रश्नों के उत्तर WWW~ AAdvanv-- उसे कभी यह ख्याल नही पाता कि मुझे चोट खानी चाहिए । इम के अलावा, एक ब्रह्मचारी जीवन है, उसे ब्रह्मचर्य की परिपालना में बड़ा आनन्द आता है पर आर्यसमाज के सिद्धात के अनुसार ब्रह्मचारी मनुप्य को ब्रह्मचर्य का प्रानन्द तभो आ सकता है जबकि वह कभी-कभी वेश्या का भी सगम करता रहे। तथा परमेश्वर जो सदा आनन्दमग्न रहता है, उसे भी उकता जाना चाहिए,उसे भी मुक्ति से वापिस आ जाना चाहिए, उसे मनुष्य के रूप में पाकर वैपयिक सुखो को उपभोग करना चाहिए । पर ऐसा होता नहीं है । न यह आर्यसमाज को मान्य है। जब परमेश्वर अपने यानन्द मे सदा मग्न रह सकता है, तो अन्य मुक्त जीव मुक्ति मे सदा आनन्दमग्न क्यो नही रह सकते ? साराश यह है कि मुक्त जीव लगातार प्रात्ममुख भागने से तृप्त हो कर मुक्ति से वापिस आ जाता है, ऐसा नही समझना चाहिए । बल्कि यहा समझना चाहिए कि मुक्त जीव सदा मुक्ति मे ही रहता है, और वही अपने आत्मगुण मे सदा निमग्न रहता है। ___मुक्ति मे मुक्त आत्मामा के भीड़-भडक्के को पागका करना भी एक जवर्दस्त भ्रान्ति है । मुक्त जोवो मे जब गरीर ही नहीं होता, तत्र उन्हें एक स्थान मे क्या वाघा हो सकती है? वैदिक धर्म परमेश्वर को सर्व-व्यापक मानता है। क्या सारे ससार में ठसाठस जड़ परमाणुप्रो. के भरे रहने पर भी परमेश्वर उस जगह ठहरता है । जब परमेश्वर को कोई बाधा नहीं पहुचती है तो मुक्त जीवो को क्या बाधा पहुच सकती एक उदाहरण और लीजिए । एक राष्ट्रनेता है, वह भाषण दे रहा है, लाखो की सख्या में जनता वहा उपस्थित है। सभी की आंखें नेता की प्रोर लगी हुई हैं। सभी के नेत्रो को ज्योति नेता के शरीर
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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