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________________ प्रश्नों के उत्तर ......... .........२६६ उस व्यक्ति ने डाक्टर से ऐनक ले ली और पाखो पर से लगा कर ईश्वर की दी हुई सजा को निष्फल बना दिया। वह ऐनक लगा कर दूर की चीज़ साफ देख लेता है और बारीक से बारीक अक्षर भी पढ लेता है। इसी भाति ईश्वर की भेजी हुई प्लेग, हैजा आदि बीमारियो को डाक्टर लोग, मेवा-ममितिया अपने अनथक परिश्रम से वहुत कम कर देते है। इसके अतिरिक्त, कर्मों का फल भुगताने के लिए भूकम्प भेजते समय ईश्वर को यह भी ख्याल नही रहने पाता कि जहां मेरी आराधना और उपासना होती है, ऐसे स्थानक, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा आदि धर्म-स्थानो को नष्ट करके अपने उपासको की सम्पत्ति को नष्ट न होने दूं। ३-संसार जानता है कि चोर, डाकू आदि आततायी लोगो की सहायता करना एक भयकर दोष माना गया है। ऐसा करना लोकविरुद्ध होने के साथ-साथ धर्म-विरुद्ध भी है । जो लोग चोर आदि दुष्ट लोगो की स्वार्थवश सहायता करते है, तो वे शासन-व्यवस्था के अनुसार दण्डित किए जाते हैं। ऐसी दशा मे जो ईश्वर को कर्मफल-प्रदाता मानते हैं,और यह समझते हैं कि किसी को जो दुख मिलता है वह उसके अपने कर्मों का फल है और वह फल भी ईश्वर का दिया हुआ है। फिर भी वे यदि किसी अन्धे की, लूले-लगडे की, अनाथ _और असहाय की सहायता करते हैं तो यह ईश्वर के साथ विद्रोह नही तो और क्या है ? क्या वे ईश्वर के चोर की सहायता नहीं कर रहे ? क्या ईश्वर ऐसे द्रोही व्यक्तियो पर प्रसन्न रह सकेगा, तथा दुःखो और असहाय व्यक्ति की सहायता करना, ईश्वर के साथ द्रोह करना है, ऐसा मान लेने पर दया, दान आदि सात्त्विक और परोपकारपूर्ण अनुष्ठानो का कुछ महत्त्व रह सकेगा? उत्तर स्पष्ट है- कभी भी नही।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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