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________________ प्रश्नो के उत्तर २६४ का घोर शब्द होना आदि जितनी भी बाते हैं, उनका सचालक कोई नही है । ये सब घटनाए व परिवर्तन प्राकृतिक नियमो के अनुसार स्वतः ही होते रहते है। इसी प्रकार मनुष्य को उसके पूर्वकृत कर्म का फल देने वाला, एक योनि से दूसरी योनि में ले जाने वाला, माता के गर्भ में भ्रूण अवस्था से ले कर यौवन और वृद्धावस्था पर्यंत शरीर की वृद्धि व ह्रास करने वाला तथा जीवन की अन्य जितनी भी दशाएं हैं, उन को निश्चित करने वाली ईश्वर नाम की कोई शक्ति नही है । ये सब कार्य कर्मजन्य प्राकृतिक नियमो के अनुसार अपने श्राप ही होते रहते हैं । ईश्वर को यदि कर्मफल- प्रदाता मान लिया जाए तो ईश्वर जीवों को फल किस प्रकार देता है ? यह विचारणीय है । वह स्वयं साक्षात् तो दें नही सकता। क्योंकि वैदिक दर्शन की मान्यतानुसार वह निराकार है । और यदि वह साकारावस्था मे प्रत्यक्ष रूप से कर्मों का फल दे तो इस बात को मानने से कौन इन्कार कर सकता है ? परन्तु ऐसा देखा नही जाता। यदि वह राजा आदि के द्वारा जीवो को उनके कर्मों का दण्ड दिलवाता है, तो ईश्वर पर अनेको आपत्तिया श्राती हैं। जानकारी के लिए केवल कुछ एक का निम्नोक्त पक्तियो मे वर्णन किया जायगा । · 4 १- ईश्वर को यदि किसी घनी के धन को चुरा या लुटा कर उस वनी के पूर्वकृत कर्म का फल देना अभीष्ट है तो ईश्वर इस कार्य को स्वयं तो आकर-करता नही, किन्तु किसी चोर या डाकू द्वारा ही ऐसा कराएगा । तो ऐसी दशा मे वह जिस चोर या डाकू द्वारा ऐसा कर्म T t T " M "" करवाएगा, वह चोर या डाकू ईश्वर की श्राज्ञा का पालक होने से निर्दोष होगा । तथापि दोषी ठहरा कर पुलिस जो उसे पकड़ती है और दड देती है, वह ईश्वर के न्याय से वाहिर की बात होगी। यदि उसे भी ईश्वर के व्याय में मान कर घोर को चोरी करने का दण्ड पुलिस द्वारा
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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