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________________ २५९ षष्ठम अध्याय लिए जाएं तो प्रश्न उपस्थित होता है कि कसाई जीवो को घात करते हैं, चोर चोरी करते हैं, डाकू डोके डालते है, गाठ-कतरे गाठे काटते हैं, व्यभिचारी पतिव्रता और सन्नारियो का' शील-भग करते है, इस प्रकार के सभी दुष्ट कार्य क्या ईश्वर की प्रेरणा से होते है ? क्या ईश्वर इन कार्यों की प्रेरणा करता है ? यदि नही तो यही मानना होगा कि ससार के किसी कार्य में ईश्वर का कोई दखल नहीं है। ईश्वर किसी को कोई प्रेरणा नहीं देता। जीव स्वंय ही अच्छे या बुरे कार्यो मे प्रवृत्त होते हैं, ईश्वर का उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। ' ' प्रश्न- क्या ईश्वर को भाग्य का विधाता मानना चाहिए ? उत्तर- कभी नही । यदि ईश्वर को भाग्य का रचयिता मान लिया जाए तो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी उस ईश्वर को भाग्य रचना मे कोई दोष नही होना चाहिए। और यदि दोष रह जाए तो तत्क्षण उस का उसे सुधार कर देना चाहिए । पर ऐसा होता नहीं है। साधारण कारीगर किसो यन्त्र का निर्माण करता है, और उसमे यदि वह कोई दोष देखता है तो वह उसका पुन सगोवन करके उसके दोप को निकालने का प्रयत्न करता है। स्विटज़रलैण्ड के एक घडी निर्माता के पास एक ग्राहक आया और उसने कहा कि आपके यहा से खरीदी हुई यह घडा सप्ताह मे एक मिण्ट पीछे चलती है। घडी-निर्माता ने घडी को लिया और तुरन्त एक होंडा मार कर तोड़ दिया, ग्राहक को दूसरी नई घडी देकर रवाना किया और वह स्वय उस घड़ी के दोष को दूर करने के लिए-नई घडी बनाने मे मलग्न हो गया। यह आज के वैज्ञानिक की कार्य पद्धति है- जो सर्वज्ञ नही है और जिसकी शक्ति भी सीमित है । जब ईश्वर सर्वज्ञ-एव सर्वशक्ति-सपन्न है.तो उसके प्रावि कार मे पहले तो दोप रहना नहीं चाहिए। यदि रह गया तो उसे अब तक कभी सुधार लेना चाहिए था। इतनी भूल तो वर्षा के समय
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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