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________________ प्रथम अध्याय वे भारत के निवासी हैं, भारत को अपना देश मानते है और राष्ट्रहित के लिए अपनी सेवाएँ देते रहे हैं और दे रहे है । 1 हिन्दू शब्द का जब "वैदिक धर्मावलम्वी" अर्थ किया जाता है, तव जैन अपने आपको हिन्दू नही समझते । धर्म के सबंध में अब यह भ्रम दूर हो गया है कि जैनधर्म वैदिक धर्म या किसी अन्य धर्म की शाखा नही है । वह वैदिकधर्म से भिन्न एक स्वतंत्र और मौलिक धर्म है । उसका धार्मिक प्रचार-विचार वैदिक आचार-विचार से सर्वथा भिन्न है । त धार्मिक दृष्टि से जैन जैन हैं, हिन्दू (वैदिक) नहीं । वास्तव मे हिन्दू एक जाति (राष्ट्रीय जाति) है, न कि धर्म । राष्ट्र के दुर्भाग्य से कुछ लोगो ने हिन्दू शब्द को धर्म की साम्प्रदायिक कारा में कैद कर लिया। इस से राष्ट्र को समय- समय पर अनेको कठिनाईयो का सामना करना पडा । राष्ट्र के अन्य धर्म जैन, बौद्ध, सिक्ख, मुसलमान आदि जिन को वैदिक धर्म पर विश्वास नही था, अलग हो गए। इस से राष्ट्र की प्रातरिक शक्ति कमजोर हो गई और वह परतत्रता की बेडी मे जकडा गया । समय ने करवट ली और देश मे फिर से राष्ट्रीयता की भावना उद्धृद्ध हुई जिससे हिन्दू शब्द को साप्रदायिकता की काल - कोठरी से मुक्त करके विशुद्ध राष्ट्रीय क्षेत्र मे लाने का प्रयास किया जा रहा है । परिणामस्वरूप भारत मे रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को हिन्दू मानने मे गौरव का अनुभव करने लगा है । सदियो से बिखरे मनके फिर से एक माला में इकट्ठे हो रहे है | यह राष्ट्र का सद्भाग्य ही है । AMA Exp www. प्रश्न- जैन धर्म का क्या अर्थ है ? उत्तर - जैनधर्म का अर्थ समझने से पहले यह समझ लेना श्रावश्यक * इस विषय पर आगे के पृष्ठो मे विस्तारपूर्वक विचार करेंगे ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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