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________________ प्रश्नो के उत्तर ............... २३२ - मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त जैनधर्म के अनुयायी थे। ये श्री भद्रबाहु स्वामी के पास दीक्षा स्वीकार करके मैसूरपात (दक्षिण) में गए थे। श्रवणवेलगोला की गुफा में इन्होने आत्मसाधना की थी। महाराज चन्द्रगुप्त के पोत सम्राट अशोक अपने पूर्व राज्यकाल मे जैन थे। इस्वी सन् स. १०० वर्ष पूर्व हुए कॉलंग देश के सम्राट् राजा खारवेल. भी जन थे। यह वात उडोसा के खण्डगिरि के गिलालेखा में प्रसिद्ध है। दक्षिण व पश्चिम में राज्य करने वाले अनेक देनो के राजा जैन थे । गग वश के भी सब राजा जैन थे। इस वग ने दूसरी से ११वी गताब्दी तक दक्षिण मे राज्य किया था। राजकट वश के प्रसिद्ध राजा अमोघवर्ण भी जैन थे। अठान्ह देशो मे आज्ञा चलाने वाले महाराज कुमारपाल जैन थे। इस प्रकार जैनधर्म को मानने वाले अनेक राजा लोग थे, जिन्होने जैनधर्म को प्रभा को फैलाने मे योग दे कर अपने जीवन को यशस्वी वनाया था। राजायो के अतिरिक्त मत्री और सेनापति भी जैन धर्म के अतुयायी रहे है । जैनमत्रियो मे वस्तुपाल और तेजपाल का नाम इतिहास की अमूल्य सम्पत्ति है। दोनो भाई वाघेला वा के राजा वीरववल के मत्री थे। राजनीति के पण्डित और जैनवर्म के अनन्य भक्त होकर भी समस्त धर्मों के प्रति बडे उदार थे। मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के प्रधानमत्री भामागाह जैन को कौन नहीं जानता ? सकट काल में वारह वर्ष तक २५ हजार आदमी भोजन कर सकें इतना धन भामा. नाह ने महाराणा प्रताप को दिया था । मेवाड़ मे आज भी भामाशाह के वंशज जीवित है, जो जैन हैं। अजमेर के राजा विजयसिंह के सेना. पति धनराज सिंघवी जैन थे। गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के सेनाध्यक्ष प्रामु भी जैन थे।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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