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________________ २१५ वर्णन सबसे रोचक है । जैसे- कोंक, बंकाट, कटुक और दक्षिण कर्नाटक तथा द्वीपकल्प के पश्चिमी भाग का रोचक वर्णन है और यह भी सकेत कर दिया गया है कि उक्त देशो के लोगो द्वारा जैनधर्म स्वीकार कर लिया गया था । ऋषभदेव के अतिरिक्त पाचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ के सबंध में भी भागवत मे उल्लेख मिलता है कि "वह कितने ही नास्तिको द्वारा देव रूप में पूजित होगा । " इसके सिवाय भगवान नेमीनाथ कृष्ण के चाचा और जैनो के वाइसवें तीर्थंकर हैं और उग्रसेन की पुत्री राजमती के कारण कृष्ण की कथा से सबद्ध हैं, का भी उल्लेख मिलता है । * वैदिक परपरा के प्राचीन ग्रंथो में ऋगवेद का महत्त्वपूर्ण स्थान है | भगवान ऋषभदेव के सबध मे उसमे उल्लेख मिलता है । एक जगह लिखा है चतुथ अध्याय " " तू प्रखण्ड पृथ्वीमंडल का सार त्वचा रूप है, पृथ्वीतल का भूषण है और दिव्य ज्ञान द्वारा आकांश को नापता है । हे ऋषभनाथ सम्राट ! इस संसार में जगरक्षक व्रतों का प्रचार करो। 1 = V भगवान ऋषभदेव के निर्वाण स्थान के संबंध में उल्लेख करते हुए शिव पुराण मे लिखा है- "विश्व का कल्याण करने वाले सर्वज्ञ ^ /V wwwwwww ~~~~ ↑ विष्णुपुराण ( विल्सन ) पृष्ठ १६४, टिप्पण | wwwwww * इण्डि० एण्टी, (डा. याकोवी) पृष्ठ १६३ । + श्रादित्या त्वगसि श्रादित्य सदासीद्, अस्तभ्रादया वृषभो सरिक्ष जमिमीते वरिमाणम् । पृथिव्या प्रामीत् विश्वा भुवनानि, सम्राट् विश्वे तानि वरुणम्य व्रतानि । -ऋगवेद ३० प्र० ३
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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