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________________ प्रश्नो के उत्तर २०२ * रहा हू । लोग कहने लगे कि गुरु जी आज आपका स्वास्थ्य ठीक तो है न ? जरा सोचिए तो क्या यहां से फेंका हुआ पानी खेतो में पहुंच सकेगा ? गुरु जी ने जरा मुस्कराते हुए कहा- क्यो नही ? जव तुम लोगो के द्वारा सूर्य को चढ़ाया हुआ जल सूर्यलोक में पहुच जाता है, पितरों को चढाया हुआ भोग पितृलोक मे पहुच जाता है, तो मेरा यह पानी खेतों तक क्यों नही पहुंचेगा ? 'अथवा अवश्य पहुचना चाहिए । यदि यह पानी खेतो तक नहीं पहुंचता है, तो फिर सूर्य एवं पितरों को चढाया हुआ जल एव भोजन भी सूर्यलोक एव पितृलोक आदि स्थानो मे पहुँच सकेगा, यह सोचना चन्द्र पकड़ने की बाल क्रीड़ा से अधिक महत्त्व नहीं रखता है । - 1 ANUVANNIV PINN · AAAA इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि जो व्यक्ति शुभ या अशुभ जैसा भी कर्म करता है, उसका फल उसी को मिलता है । कर्म फल मे अन्य किसी का संविभाग नही होता । 1 i निर्जरा त t ससार मे आत्मा और कर्म पुद्गलो का सबंध अनादि काल से चला या रहा है । --प्रत्येक ससारी आत्मा-प्रतिक्षण, कर्म - पुद्गलो का संग्रह करता है । कोई समय ऐसा नही जाता जिससे कि वह कर्मो का ग्रहण न करता हो । परन्तु ग्रहण करने की प्रक्रिया के साथ-साथ वह त्याग भी करता रहता है । वह जिन कर्मो का फल भोग चुका, वे कर्म उसके आत्म-प्रदेशो से अलग हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को आगमिक • भाषा मे निर्जरा कहते हैं । यो तो प्रत्येक श्रात्मा मे प्रति समय कर्मो 4 & 7 की निर्जरा होती रहती है और वह शुभ एवं अशुभ दोनो तरह के कर्मो की होती है | शुभ योगो के द्वारा आत्मा अशुभ कर्मों की निर्जरा करती है और अशुभ योगों के द्वारा शुभ कर्मों की निर्जरा करती है }
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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