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________________ १७६ कर्म, इसी तरह वैक्रियादि पाचो गरीरो के साथ बंन्धन नाम कर्म जोड देना चाहिए | सघातन नाम कर्म के ५ भेद- १ प्रदारिक शरीर सधातन नाम कर्म, इसी तरह वैक्रियादि के साथ सघातन नाम कर्म जोड देना चाहिए। सहनन नाम कर्म के ६ भेद- १ वज्र ऋषभ नाराच, २ ऋषभ नाराच, ३ नाराच, ४ अर्ध नाराच, ५ किलिका र ६ सेवार्त । सस्थान नाम कर्म के ६ भेद - १ समचतुस्र, २ न्यग्रोध, ३ सादि ४ कुब्ज, ५ वामन और ६ हुण्डक सस्थान । वर्ण के ५ भेद है - १ कृष्ण, २ नील ३ रक्त-लाल, ४ पीत और ५ श्वेत वर्ण । गन्ध के २ भेद'सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध । रस के ५ भेद -- १ तिक्त, २ कटु, ३ कषाय, ४ आम्ल और ५ मधुर रस । स्पर्श के ८ भेद - १ गुरु, २ लघु, ३ मृदु, ४ कठोर, ५ गीत, ६ उष्ण. ७ स्निग्ध और ८ रूक्ष स्पर्श । ग्रानुपूर्वी के ४ भेद - १ नरकानुपूर्वी २ तिर्यञ्चानुपूर्वी मनुष्यानुपूर्वी और ४ देवानुपूर्वी । विहायोगति के २ भेद -- शुभ और अशुभ विहायो गति | इस तरह १४ पिंड प्रकृतियो के ६५ भेद हुए । - इनके साथ ८ प्रत्येक प्रकृतिया, त्रस दशक और स्थावर दशक ये २८ प्रकृतिया जोड देने से नाम कर्म के ६५+२८ = ९३ भेद हो जाते हैं। ANNNNN ~~ प्रश्नो के उत्तर NV ANN VAAN wwwww wwNN V - १०३ भेद - ९३ भेद उपरोक्त और वन्धन नाम कर्म के ५ भेद की जगह १५ भेद भी होते हैं । वे निम्न प्रकार हैं- १ प्रदारिक-प्रदारिक बन्धन नाम कर्म, २ प्रदारिक- तेजस वन्धन नाम कर्म, ३ प्रौदारिककार्मण बन्धन नाम कर्म, ४- वैक्रिय - वैक्रिय बन्धन नाम कर्म, ५ वैक्रियतेजस वन्धन नाम कर्म, ६ वैक्रिय - कार्मण बन्धन नाम कर्म, ७ आहारकआहारक बंधन नाम कर्म, ८ आहारक-तैजस वधन नाम कर्म, ९ प्रा“ हारक-कार्मण बधन नाम कर्म, १० औदारिक-तैजस-कार्मण बघन नाम कर्म, ११ वैक्रिय- तैजस-कार्मण वधन नाम कर्म, १२ प्रहारक- तैजस
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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