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Newar
प्रन्नो के उत्तर mmmmmmmmmmm तरह मोह कर्म के उदय से आत्मा अपने स्वरूप को समझ नहीं पाता है। मोह कर्म दो प्रकार का माना है... १ दर्शन मोह और २ चारित्र मोह। दर्शन मोह के तीन भेद माने है-१ सम्यक्त्व मोहनीय, २ सममिथ्यात्व मोहनीय और ३ मिथ्यात्व मोहनीय।२ चारित्र मोह के दो भेद हैं- १ कपाय और २ नोकपाय । कपाय १६ प्रकार का है-१ अनन्तानुवधी कपाय, २ अप्रत्याख्यानी कपाय, ३ प्रत्याख्यानी कषाय, और ४ सज्वलन कपाय । प्रत्येक कपाय के ? क्रोध, २ मान, ३ माया और लोभ ये चार भेद होते हैं । नोकषाय के ९ भेद होते है.- १ हास्य, २ रति, ३ अरति, ४ भय, ५ गोक, ६ दुगच्छा , ७ स्त्री वेद,.८ पुरुष वेद ९ नपुसक वेद । इस तरह दर्शन मोह के ३ और चारित्र मोह के २५, कुल मिलाकर मोहनीय कर्म के २८ भेद होते हैं।
५ आयु कर्म इस कर्म के उदय से आत्मा किसी एक गति के प्राप्त गरीर मे रहता है। इस कर्म का क्षय होते ही वह उस शरीर को त्याग देता है, जिसे व्यवहार भापा मे मृत्यु कहते हैं। इस कर्म का स्वभाव कारागार (जेल) के समान है। क्योकि जेल मे कैदी के बन्धन का निश्चित समय होता है, उसी तरह आत्मा का एक गति मे प्राप्त स्थूल शरीर के साथ रहने का भी निश्चित समय होता है । ससार मे चार गतिये हैं- १ नरक २ तिर्यच, 3 मनुप्य और ४ देव । इसलिए आयु कर्म भी चार प्रकार का माना है- १ नरक आयु, २ तिर्यच आयु, ३ मनुप्य प्रायु और ४ देव आयु। - -
- ६ नाम कर्म - - .. यह कर्म चित्रकार के तुल्य है । जैसे चित्रकार अनेक ग्राकारप्रकार के चित्र चित्रित करता है, उसी तरह नाम कर्म भी देव, नारक