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________________ प्रश्नो के उत्तर www...............१४२ होता है और प्रत्येक द्रव्य की पर्यायों में उत्पाद और व्यय होता रहता है । समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन-रात, महीना, वर्प, शताब्दी आदि को व्यवहार काल कहते हैं । यह अनन्त समय (पर्याय) वाला है । यो तो समय एक ही होता है। क्योकि वर्तमान एक समय का ही होता है। परन्तु भूत और भविष्य की अपेक्षा से अनन्त समय होते है। इस कारण काल को अनन्त समय वाला कहा गया है। यह व्यवहार काल सौर मडल एव घड़ी आदि से जाना-पहचाना जाता है। काल को प्राय. सभी दार्शनिको ने माना है। उन्होने मात्र व्यवहार काल को माना है। काले द्रव्य को जैनो ने ही स्वीकार किया है। कुछ आचार्य उसे स्वतंत्र द्रव्य नहीं मानते, परन्तु कुछ स्वतत्र द्रव्य मानते है । हा, वे भी उसे अस्तिकाय (समूह रूप) नही मानते है । अस्तु काल के असख्यात अणु एक दूसरे से सवद्ध नही है, परन्तु मुक्ता कणो की भाति आकाश के प्रत्येक प्रदेश पर अलग-अलग स्थित है। इस तरह जैनो ने छ द्रव्य माने हैं- धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव । उनमे पाच अस्तिकाय (समूह रूप) है और काल समूह रूप नही है । और प्रथम के पाचों द्रव्य अर्थात् जीव द्रव्य को छोड़कर शेष पाचो द्रव्य अजीव हैं, चेतना रहित हैं।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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