SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२९ द्वितीय अध्याय और दो ग्रग्रो वाला स्कघ होता है । इससे स्पष्ट है कि अणु को जो कार्य रूप या उत्पन्न होना माना है, वह स्कध मे रहे हुए अणुओ को उस स्कघ से अलग होने की अपेक्षा से माना है । वैशेषिक दर्शन की पदार्थ मान्यता वैशेषिक दर्शन नव पदार्थ मानता है- पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन । प्रथम चार द्रव्यो मे उनने जिन गुणो को माना है, वे सब पुद्गल द्रव्य मे आ जाते है । वैशेषिक पृथ्वी मे वर्ण, गध, रस, स्पर्ग चार गुण, अप मे वर्ण, रस, स्पर्श तीन गुण, , तेज मे वर्ण और स्पर्श दो गुण और वायु से केवल स्पर्श गुण मानते है। जैन दर्शन सभी मे चारो गुण मानता है, क्योकि वर्ण, गध, रस और स्पर्श सहचारी है। वायु मे रूप स्पष्टतया दिखाई नही देता है, इस का कारण हमारी चक्षु इन्द्रिय की पटुता की कमी है, न कि वायु ही रूप रहित है । उसका रूप अनुभव सिद्ध है, क्योकि वह स्पर्शाविनाभावी है | जसे घट-पट-तख्त आदि मे रूप है, क्योकि वहा स्पर्श है । वायु मे रूप होते हुए भी दृष्टिगोचर नही होता, इसका कारण यह है कि चक्षु आदि इन्द्रियो स्थूल विपय को ही ग्रहण कर सकती हैं। जैसे पृथ्वी मे सूक्ष्म गध के रहते हुए भी घ्राणेन्द्रिय उसे ग्रहण नही कर सकती, उसी तरह वायु मे स्थित रूप को भी चक्षु इन्द्रिय देख नही सकती । जैनो की यह मान्यता वैज्ञानिको की प्रयोगशाला मे भी सिद्ध हो चुकी है । वैज्ञानिको ने यह प्रमाणित कर दिया कि वायु को निरन्तर ठडा करते रहने पर वह नीले रंग मे परिवर्तित हो जाता है, जैसे वाष्प को पानी के रूप मे 1 NWA † વૃયિવ્યન્તેનોવાચ્વાળાગાવિાત્મામનાસિ । - तर्कसंग्रह |
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy