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________________ प्रश्नो के उत्तर करें, वह टुकडा रूपादि युक्त होगा और जो हिस्सा स्पादि युक्त है, उसका फिर विभाग हो सकता है । वह विभाग भी रूपादि युक्त होगा, अत. उसका विभाग एव आगे होने वाले विभागो का भी विभाग होना सभव है, क्योकि वे सब विभाग स्पादि युक्त होंगे। अणु को निरवयव मानने से उसमे अनवस्था दोप होगा। अत यह मानना गलत है कि पुद्गल का अविभाज्य अग या विभाग होता है। इसके उत्तर में एक प्रसिद्ध विचारक ' एरिस्टोटल' ने कहा कि जेनो का यह तर्क सही नहीं कहा जा सकता । जहा तक कल्पना का सवाल है, हम अणु के भी अणु करते जाएगे, किन्तु प्रैक्टीक्ल रूप मे ऐसा नहीं हो सकता। जब हम किसी वस्तु को विभक्त करने लगते है तब वह विभाग कही न कही पहुंचकर अवश्य रुकता है । जिस खण्ड के वाद उसका विभाग नही होता, वही अणु है । काल्पनिक खण्ड के विषय में माना जा सकता है कि वह अन्त रहित है, क्योकि कल्पना की पहुंच अन्ति तक है । परन्तु पदार्थ के विषय मे ऐसा मानना गलत होगा और अनुभव से भी विरुद्ध होगा, क्योकि पदार्थ अन्त सहित है, उसका किनारा स्पष्ट परिलक्षित होता है । सब से बड़ा प्रमाण यह है कि पदार्थ मूर्त है और मूर्त सदा सान्त होता है । इसलिए पुद्गल का अन्तिम हिस्सा अवश्य होता है। उसका जो अन्तिम भाग है, वही अणु है और वह अविभाज्य अश है। हम प्रारभ मे ही बता चुके है कि पुद्गल वर्ण, गघ, रस, स्पर्श सहित होते हैं । स्कन्वादि मे तो यह वात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। परन्तु परमाणु में कैसे घटित होगी, जिसका कोई विभाग नहीं होता और जो न इन्द्रिय गोचर ही होता है? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक • है। इसका उत्तर इस प्रकार दिया गया है कि परमाणु आखो से दिखाई
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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