SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२१.www.www.. द्वितीय अध्याय ~ Movie इसे धारण करता है, पुद्गलो से रोका जाता है, पुद्गलो को रोकता हैं, पुद्गल- कान आदि के पर्दो को भी फाड़ देता है, पौद्गलिक वातावरण मे कपन पैदा करता है, इससे वह पौद्गलिक है। ___ . आकाश अमूर्त है, अत. उसका गुण अमूर्त द्रव्य हो सकता है, न कि मूर्त पदार्थ । शब्द- अमूर्त नही है। क्योकि अमूर्त पदार्थ मूर्त पुद्गल के द्वारा न तो पकडा ही जा सकता है और न उसे यंत्रो के द्वारा स्थानान्तर मे भेजा ही जा सकता है । किन्तु शब्द दो स्कन्धो के संघर्ष से पैदा होता है और अपने आस-पास के स्कन्धो को भी शब्दायमान कर देता है अर्थात् वह अपने प्रवाह पथ मे पड़ने वाले स्कन्धो को गन्द पर्याय मे बदल देता है और इस तरह वह दूर-दूर तक फैल जाता है। जैसे जल मे ककड़ डालने पर एक लहर उत्पन्न होती है और वह लहर अपने आस-पास के अन्य जलकणो को तरगित करती हुई जलागय को तरगित कर देती है और वह 'वीचीतरग न्यायवत्' जलाशय के वातावरण को तरगित करती हुई काफी दूर तक फैल जाती है । इसी तरह शब्द भी प्रासपास के स्कन्धो को शब्दमय बनाते हुए बहुत दूर तक फैल जाते हैं । इसलिए उन्हे अमूर्त अाकाश का गुण मानना विज्ञान, तर्क एव बुद्धि के सर्वथा विपरीत है। विज्ञान शब्द एव प्रकाग की गति के लिए जिस इथर नामक पदार्थ के माध्यम की कल्पना करता है, वह आकाश नही है । हम पहले ही बता चुके हैं कि वैज्ञानिको का इथर जैनो के धर्म द्रव्य के समान अमूर्न, निष्क्रिय, लोक व्यापी और परिणमनशील तत्त्व है और वह जीव एव पुद्गल की गति मे साधारण कारण है । आकाग एक अखण्ड द्रव्य है और अनन्त प्रदेशी है । यदि उसे
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy