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________________ प्रश्नो के उत्तर ११२ में या जाए तो एक मिन्ट मे वे घबरा जाते है, जव कि वहा के निवासी मस्ती से अपनी जिन्दगी वीता देते हैं। जवासा एव आक के पौधे गर्मी में फले-फूले रहते है । ग्रत इसमें कोई ग्राश्चर्य की बात नही कि उष्णता में भी जीव रह सकते है | भगवती सूत्र में गौत्तम स्वामी के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने फरमाया है कि हे गोत्तम । वनस्पति के जीव वर्षा ऋतु में अधिक आहार लेते हैं और ग्रीष्म ऋतु मे थोडा ग्राहार लेते हैं । इस पर गौत्तम ने पूछा कि जव गर्मी में वनस्पति के जीव थोडा ग्राहार लेते है,तो कुछ पौधे गर्मी में भी पल्लवित - पुष्पित एव हरे-भरे क्यों दिखाई देते है ? इसका उत्तर देते हुए भगवान ने कहा कि हे गोत्तम ! बहुत से उष्णयोनि के जीव ग्राकर उसमें उत्पन्न होते हैं । इसलिए वे पौधे उस भीषण गर्मी मे भी हरे-भरे दिखाई देते है । ईससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि उष्णता में भी जीवन रह सकता है । - वायु की सजीवता भी स्पष्ट है । कुछ लोग आखो से दृष्टिगोचर न होने के कारण वायु को सजीव नही मानते है । परन्तु उन का यह तर्क उपयुक्त नही कहा जा सकता । वयोकि बहुत से ऐसे पदार्थ है, जो ग्रांखो से दिखाई नही देते, फिर भी हम उनके अस्तित्व को मानते 1 है । जैसे देवता का शरीर हमे प्रत्यक्ष दिखाई नही देता । कई, योगि, मत्र तत्र और श्रीषधि के प्रयोग से अपने स्थूल शरीर को छुपा लेते है, अदृश्य हो जाते हैं, फिर भी हम उन्हे सजीव मानते हैं । ग्रत वायु-हवा आखो से दिखाई न देने मात्र से ही निर्जीव नही कही जा सकती । प्रत्यक्षीकरण केवल ग्राखो से ही नही, श्रोत्र, घ्राण, रसना और स्पर्ग इन्द्रिय से भी होता है । जैसे फूल एव इत्र की सुगन्ध आखो + भगवती सूत्र, शतक, ७, उद्दे शक ३ । www 2
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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