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द्वितीय ग्रध्याय
पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि जीव का उपयोग लक्षण सामान्य रूप से एक है, परन्तु विशेप दृष्टि से सब जीवो का उपयोग लक्षण उत्कर्ष एव अपकर्ष की अपेक्षा से अनेक प्रकार का है, अत. जैनो द्वारा मान्य एक एव अनेक ग्रात्मा के सिद्धात मे कोई विरोध नही है । स्वरूप मे समानता होने पर भी सव को अनुभूति पृथक पृथक है । अत जैनो का 'एग्गे आया' का सूत्र अनेक जीववाद को भी परिपुष्ट करता है ।
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यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि यदि जीवो को एक नही अनेक मानेगे, तो फिर यह भी मानना होगा कि ससार एक दिन जीव रहित हो जायगा ? क्योकि जीव अनादि काल से मोक्ष जाते रहे है, अभी भी जाते है और भविष्य मे भी जाते रहेंगे । इस से एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि सारे जीव मुक्ति मे चले जाए और दुनिया खाली हो जाएं ।
इसका समाधान यह है कि ससार मे जीव अनन्त है और अनन्त सख्या का अर्थ ही यह है कि उसका कभी अन्त नही होता । अनन्त मे से अनन्त घटाने पर भी वह अनन्त ही रहता है । जैसे उदाहरण के तौर पर प्याज के छोटे से छोटे टुकड़े को लेते है, उस मे प्रसख्यात गोले है, प्रत्येक गोले में सख्यात पर्त हैं, प्रत्येक पर्त मे सख्यात शरीर है और प्रत्येक शरीर मे श्रनन्त जीव है । यह एक प्याज के टुकड़े की बात है, इस तरह पूरे प्याज मे भी अनन्त जीव है और पूरे प्याज मे ही नही समस्त निगोद योनि के जीव भी अनन्त हैं । परन्तु सभी अनन्त ग्रापस मे तरतम भाव वाले हैं । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अनन्त का कभी अत नही आता । अनन्त काल तक अनन्त जीव मोक्ष जाते रहेगे, फिर भी ससार के जीव अनन्त ही रहेगे । गणित ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया है । दशमलव के तरीके से आप एक अक मे से
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