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________________ ७९ द्वितीय अध्याय रूप मे स्वीकार किया है । ज्ञानादि गुणो की अपेक्षा या आत्म द्रव्य की अपेक्षा वह अमूर्त है, परन्तु कर्म के साथ सवद्ध होने से वह व्यवहार दृष्टि से मूर्त भी है। बुद्ध ने भी पुद्गल (आत्मा) को मूर्त और अमूर्त कहा है। परन्तु अन्य सभी दार्शनिको ने चेतन को अमूर्त ही माना है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विश्व के मूल मे भूत (जड़) या चेतन एक ही तत्त्व नहीं, बल्कि जड़ और चेतन दो मौलिक तत्त्व हैं और दोनो ही तत्त्व स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अात्मा एक हैं या अनेक . यह हम ऊपर स्पष्ट वता आए हैं कि उपनिषद् काल मे अद्वैतवाद का महत्त्व रहा है। वेदात में भी अद्वैतवाद ही देखने को मिलता है। आचार्य शकर ने भी ब्रह्मसूत्र भाष्य में अद्वैतवाद को हो परिपुष्ट किया है। सभी ने एक प्रात्मा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, परन्तु दुनिया में जो अनेक आत्माएं स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी, उन का वे एकदम तिरस्कार नही कर सके। इस की झलक हमे ब्रह्मसूत्र की विभिन्न व्याख्यानो मे स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। परन्तु इन सब व्याख्याकारो मे एकमत नहीं रहा, इस से वेदात दर्शन मे हमें विचार भेद से अनेक परपराए दृष्टिगोचर होती है। अन्य वैदिक दर्शनो ने भी आगम के रूप में वेद और उपनिषदो को माना है। परन्तु उन्ही को अक्षरश. आधार मान कर अपने दर्शन शान स्त्रो की रचना नही की। इससे उन दार्गनिको ने भी जैनो की तरह जड. और चेतन दो तत्त्वो तथा अनेक प्रात्माओ के सिद्धांत को माना । इस से स्पप्ट है कि ये वैदिक दर्शन वेद वाह्य विचारधारा से प्रभावित हुए. हैं। इन पर प्राचीन साख्य एवं जैनो का असर मालूम होता है। प्राचीन साख्य दर्शन जैन दर्शन के काफी निकट था। उस समय वह वेद बाह्य । दर्शन गिना जाता था। बाद के विचारकों ने उसे वैदिक विचाराधार
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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