________________ ( 264 ) किया गया है इसी कारण से इन तीनों की योग संज्ञा प्रतिपादित है। योग का अर्थ किसी से संयोग करना ही है अतः जब अात्मा का उक्त तीनों से योग (जुड़ना) होता है तब ही उक्त तीनों की योग संज्ञा बन जाती है। अव सूत्रकार योग के पश्चात् उपयोग का वर्णन करते हैं जैसेकि उवोगपरिणामेणं भंते कतिविधे पं. 1 गोयमा ! दुविहे पं. तंजहासागारोवोगपरिणामे अणागारोवोगपरिणामे / भावार्थ हे भगवन् ! उपयोग परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! उपयोग परिणाम दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसेकि-साकारोपयोग परिणाम और अनाकारोपयोग परिणाम, जैनशास्त्रों की परिभाषा में साकारोपयोग ज्ञान और अनाकारोपयोग दर्शन का नाम है कारणकि-यावन्मात्र लोक में द्रव्य हैं वे आकार (संस्थान) पूर्वक हैं। सो ज्ञान उन्हीं द्रव्यों को अपने विषय करता है। इस लिये साकारोपयोग ज्ञान का नाम है / अनाकारोपयोग केवल दर्शन मात्र होने से दर्शन का नाम माना गया है क्योंकि-दर्शन सामान्यग्राही होता है, विशेषनाही ज्ञान माना गया है / अतएव ये दोनों ही आत्मा के 'निजगुण हैं / इस लिये ये दोनों ही अरूपी हैं। जिस समय केवल आत्मा उपयोग पूर्वक होता है तव उस की अयोगी संज्ञा वन जाती है। साथ ही इस बात का भी ध्यान कर लेना चाहिए कि ये उक्त दोनों गुण आत्मा के निज गुणं हैं, इन्हें पौद्गलिक न मानना चाहिए तथा जिस आकार में घट परिणत हुआ हैं घट वैपयिक ज्ञान उसी प्रकार परिणत होगा / जव पदार्थ आकार वाले हैं तव शान निराकार किस प्रकार माना जा सकता है ? अतएव ज्ञान का ही नाम साकारोपयोग है। इसलिए योगों से अपने आत्मा को हटा कर उपयोग में नियुक्त करना चाहिए ताकि आत्मा को निज स्वरूप की प्राप्ति हो। ' अब सूत्रकार उपयोग के अनन्तर ज्ञान परिणाम के विषय में कहते हुए शान के भेदों का वर्णन करते हैं, जैसेकि__णाणपरिणामेणं भंते कतिविधेप.? गोयमा! पंचविधे प. तंजहा आभिणिबोहियणाणपरिणामे सुयणाणपरिणामे ओहिणाणपरिणामे मणपज्जवणाणपरिणामे केवलणाणपरिणामे / भावार्थ हे भगवन् ! ज्ञान परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! ज्ञान परिणाम पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसेकि-आमिनिबोधिकज्ञान, * श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवल ज्ञान / जब आत्मा मतिज्ञान में उपयुक्त होता है तब उस को आभिनि