________________ ( 2 ) इस सूत्र में इस बात का स्पष्टीकरण किया गया है कि, जो परलोक और पुण्य पाप को'मानता है उसी का नाम श्रास्तिक है / अतएव आस्तिक मत में कई प्रकार के दर्शन प्रकट हो रहे हैं। जिज्ञासुओं को उनके देखने से कई प्रकार की शंकाएँ उत्पन्न हो रही हैं वा उनके पठन से परस्पर मतभेद दिखाई दे रहा है, सो उन शंकाओं के मिटाने के लिए वा मतभेद का विरोध दूर करने के लिये प्रत्येक जन को जैनदर्शन का स्वाध्याय करना चाहिए। क्योंकि, यह दर्शन परम आस्तिक और पदार्थों के स्वरूप का स्याद्वाद की शैली से वर्णन करता है / क्योंकि, यदि सापेक्षिक भाव से पदार्थों का स्वरूप वर्णन किया जाए तब किसी भी विरोध के रहने को स्थान उपलब्ध नहीं रहता / अतएव निष्कर्ष यह निकला कि प्रत्येक जन को जैनदर्शन का स्वाध्याय करना चाहिये। . . अब इस स्थान पर यह शंका उत्पन्न होती है कि, जैन दर्शन के खाध्याय के लिये कौन 2 से जैनग्रंथ पठन करने चाहिएँ ? इस शंका के समाधान में कहा जाता है कि, जैनांगमग्रंथ वा जैन प्रकरण ग्रंथ अनेक विद्यमान हैं, परन्तु वे ग्रंथ प्राय. प्राकृत भाषा में वा संस्कृत भाषा में है तथा बहुत से ग्रंथ जैनतत्त्व को प्रकाशित करने के हेतु से हिन्दी भाषा में भी प्रकाशित हो चुके हैं वा हो रहे हैं, उन ग्रंथों में उनके कर्ताओं ने अपने अपने विचारानुकूल प्रकरणों की रचना की है। अतएव जिज्ञासुओं को चाहिए कि वे उक्त ग्रंथों का स्वाध्याय अवश्य करें / अब इस स्थान पर यह भी शंका उत्पन्न हो सकती है कि, जब ग्रंथसंग्रह सर्व प्रकार से विद्यमान हैं। तो फिर इस ग्रंथ के लिखने की क्या आवश्यकता थी? इस शंका के उत्तर में कहा 'जासकता है कि, अनेक ग्रन्थो के होने पर भी इस ग्रंथ के लिखे जाने का मुख्योद्देश्य यह है कि, मेरे अंत करण मे चिरकाल से यह विचार विद्यमान था कि, एक ग्रंथ इस प्रकार से लिखा जाय जो परस्पर साम्प्रदायिक विरोध से सर्वथा विमुक्त हो और उस में केवल जैन तत्त्वों का ही जनता को दिग्दर्शन कराया जाय, जिस से जैनेतर लोगों को भी जैन तत्त्वो का भली भांति बोध हो जाए। सो इस उद्देश्य को ही मुख्य रख कर इस ग्रंथ की रचना की गई है / जहाँ तक हो सका है, इस विषय की पूर्ति करने में विशेष चेष्टा की गई है / जिस का पाठक गण पढ़कर स्वयं ही अनुभव कर लेगें क्योंकि, देव गुरु धर्मादि विषयों का स्वरूप स्पष्ट रूप से लिखा गया है, जो प्रत्येक आस्तिक के मनन करने योग्य है / और साथ ही जीवादि तत्त्वो का स्वरूप भी जैन आगम ग्रंथों के मूल सूत्रों के मूलपाठ वा मूलसूत्रों के आधार से लिखा गया है, जो प्रत्येक जन के लिये पठनीय है। आशा है, पाठकगण इस के स्वाध्याय से अवश्य ही लाभ उठा कर मोक्षाधिकारी बनेगे। अलम् विद्वत्सु / भवदीय उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम /