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________________ ( 266 ) प्रश्न-ऊंचगोत्र नाम कार्मण शरीर प्रयोगबंध किस प्रकार से किया जाता है? उत्तर-किसी भी प्रकार से अहंकार न किया जाए अर्थात् किसी पदार्थ के मिलने पर यदि गर्व न किया जाए तव आत्मा ऊंचगोत्र कर्म की उपाजना करलेता है। जैसेकि-- उच्चागोयकम्मासरीरपुच्छा, गोयमा ! जातिअमदेणं कुलअमदेणं बलअमदेणं स्वामदेणं तवश्रमदेणं सुयअमदेणं लाभअमदेणं इस्सरिय अमदेणं उच्चागोयकम्मा सरीर जावप्पयोगवंधे, // ___ भग० शत० - उ. 6 // भावार्थ-हे भगवन् ! ऊंचगोत्र नाम कार्मण शरीर प्रयोग का बंध किस प्रकार से किया जाता है ? हे शिष्य ! जाति, कुल, वल, रूप, तप, श्रुत, लाभ, और ऐश्वर्य कामद न करने से ऊंचगोत्र नाम कार्मण शरीर प्रयोग का बंध किया जाता है अर्थात् किसी भी पदार्थ का गर्व न करने से ऊंचगोत्र कर्म की उपार्जना की जाती है। प्रश्न-नीचगोत्र कर्म किस प्रकार से बांधा जाता है ? उत्तर-जिन 2 कारणों से ऊञ्च गोत्र कर्म का बंध माना गया है ठीक उसके विपरीत नीच गोत्र कर्म का बंध प्रतिपादन किया गया है / जैसेकि नीया गोयकम्मासरीर पुच्छा, गोयमा ! जातिमदेणं कुलमदेणं बलमदेणं जाव इस्सरियमदेणं णीयागोयकम्मासरीर जावप्पयोगवंधे / भग०सू शतक 8 उद्देश 6 // भावार्थ-हे भगवन् ! नीच गोत्र कर्म जीघ किन 2 कारणों से वांधते हैं ? हे शिष्य ! जाति, कुल, वल, यावत् ऐश्वर्य का मद करने से जीव नीच गोत्र कर्म की उपार्जना कर लेते है, इस सूत्र का प्राशय यह है कि जिस पदार्थ का मद किया जाता है वास्तव में वही पदार्थ उस आत्मा को फिर कठिनता से उपलब्ध होता है क्योंकि--वास्तव में जीव की ऊंच और नीच संज्ञा नहीं है. शुभ और अशुभ पदार्थों के मिलने से ही ऊंच और नीच कहा जा सकता है / सो श्राट कारण स्फुट रूप से ऊपर वर्णन किये जाचुके हैं। प्रश्न-अंतरायकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर--जिस कर्म के उदय से कार्यों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित हो जावे, उसका नाम अंतराय कर्म है। क्योंकि--मन में कार्य की सिद्धि के लिये अनेक प्रकार के संकल्प उत्पन्न किये गए थे परन्तु सफलता किसी कार्य कीभीन होसकी / तब जान लेना चाहिए कि--अंतराय कर्म का उदय होरहा है।
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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