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________________ ( 264 ) ५ज्ञान वा ज्ञानियों की हलना वा निंदा करते रहना। ६ज्ञान वा ज्ञानयुक्त आत्माओं के सम्बन्ध में व्यभिचार दोष प्रकट करते रहना। जैसे कि-ज्ञान पढ़ने से लोग व्यभिचारी बन जाते हैं तथा यावन्मात्र संसार में विवाद हो रहे हैं उनके मुख्य कारण ज्ञानवान् ही हैं अतएव ज्ञान का न पढ़ना ही हितकर है इत्यादि। इन कारणों से प्रात्मा ज्ञानावरणीय कर्म को बांध लेता है अर्थात् शान से वंचित ही रहता है। इसके प्रतिपक्ष में यदि उक्त कारण उपस्थित न किये जाएँ तब आत्मा ज्ञानावरणीय कर्म से विमुक्त हो जाता है। प्रश्न-दर्शनावरणीय कर्म जीव किन 2 कारणों से बांधते हैं ? उत्तर-जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के बंध के कारण बतलाये गए हैं ठीक उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म बांधा जाता है जैसे कि-- दरिसणावरणिज्जकम्मा सरीरप्पयोगबंधे णं भंते ? कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा! दंसणपडिणीययाए एवं जहा णाणावरणिज्जं नवरं दसणं घेतव्वं जाव विसंवादणाजोगेणं दरिसणावरणिज्जकम्मा सरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं जाव प्पयोगबंध // भगवतीसूत्रशतक = उद्देश / भावार्थ-(प्रश्न) हे भगवन् ! दर्शनावरणीय कार्मण शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? (उत्तर) हे गौतम ! दर्शनावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग नामक कर्म के उदय से और दर्शन प्रतिकूलतादि छः कारणों से दर्शनावरणीय कार्मण शरीर का बंध हो जाता है अर्थात् जिस प्रकार नानावरणीय कर्म का बंध प्रतिपादन किया गया है ठीक उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म का बंध प्रतिपादन किया गया है। प्रश्न- साता वेदनीय कर्म किस कारण से बांधा. जाता है अर्थात जिस कर्म के उदय से सुख की प्राप्ति होती रहे उस कर्म का बंध किस प्रकार से किया जाता है ? उत्तर-साता वेदनीय कर्म का बंध अन्तःकरण से प्रत्येक प्राणी को साता ( शांति-सुख ) देने से किया जाता है जैसे कि सायावेयणिजकम्मा सरीरप्पयोग बंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं 1 गोयमा ! पाणाणुकंपाए भूयाणुकंपाए जीवाणुकंपाए सत्ताणुकंपाए बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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