________________ ( 2 ) होकर प्रीतियुक्त मन तथा परम सौमनस्थिक से हर्ष के वश होकर हृदय जिस का विकसित होगया फिर जहाँ पर श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे वहाँ पर आकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन वार आदक्षिण प्रदक्षिण करके यावत् पर्युपासना करने लगा / तव श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कात्यायन गोत्रीय स्कन्धक को स्वयमेव इस प्रकार कहने लगे कि हे स्कन्धक! श्रावस्ती नगरी में पिंगल निर्ग्रन्थ वैशालिकश्रावक के द्वारा यह आक्षेप पूछे जाने पर कि-हे मागध ! लोक सान्त है किंवा अनंत यावत् / उक्त प्रश्न के उत्तर को पूछने के लिये ही क्या तू मेरे साप शीघ्र अाया है क्या यह निश्चय ही, हे स्कन्धक! अर्थसमर्थ है अर्थात् ठीक है? स्कन्धक परिव्राजक ने उत्तर में कहा कि हे भगवन् ! हाँ यह बात ठीक है। श्री भगवान् फिर कहते हैं कि-हे स्कन्धक ! जो तेरे इस प्रकार अध्यात्म विचार, चिंतित प्रार्थित-मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि-लोक सान्त है वा. अनंत ? उसका विवरण इस प्रकार है। हे स्कन्धक ! मैंने चार प्रकार से लोक का वर्णन किया है जैसे कि द्रव्य से, क्षेत्र से काल से और भाव से। सो द्रव्य से लोक एक है अतः सान्त है / क्षेत्र से लोक असंख्यात कोटाकोटि योजनों का लम्बा वा चौड़ा अर्थात् आयाम विप्कंभ वाला है इतना ही नहीं किन्तु असंख्यात कोडाकोड योजनों की परिधि वाला / है अतः क्षेत्र से भी लोक सान्त है किन्तु काल से लोक ऐसे नहीं है कि-भूत काल में लोक नहीं था, वर्तमान काल में नहीं है, तथा भविष्यत् काल में लोक नही रहेगा परंच भूत काल में षट् द्रव्यात्मक लोक विद्यमान था / वर्तमानकाल में लोक अपनी सत्ता विद्यमान रखता है और भविष्यत् काल में लोक इसी प्रकार रहेगा। सो अचल होने से लोक ध्रव है। प्रतिक्षण सद्भावता रखने से लोक शाश्वत है / अविनाशी होने से लोक अक्षय है / प्रदेशों के अव्यय होने से लोक अव्यय है अनंत पर्याओं के अवस्थित होने से लोक अवस्थित है। एक स्वरूप सदा रहने से लोक नियत है तथा सर्व काल में सद्भाव रहने से लोक नित्य है अतः काल से लोक अनंत है अर्थात् काल से लोक की उत्पत्ति सिद्ध नही होती // 3 // भाव से लोक अनंत वर्गों की पर्याय, अनंत गंध की पर्याय, अनंत रस की पर्याय और अनंत स्पर्श की पर्याय अनंत संस्थान की पर्याय, अनंत गुरुक-लघुक पर्याय, अनंत अगुरुक लघुक पर्याय अर्थात् बाहर स्कन्ध वा सूक्ष्म स्कन्ध तथा अमूर्तिक पदार्थों की अगुरुकलघुक पर्यायों के धारण करने से लोक का अंत नहीं है अर्थात् लोक अनंत है। अतःहे स्कन्धक! द्रव्य से तोक सान्त क्षेत्र से लोक सान्त काल से लोक अनन्त भाव से लोक अनंत है।