________________ { 231 ) उपलब्ध नहीं होता / यद्यपि पुद्गलद्रव्य के कतिपय स्कन्ध क्रिया करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं, परन्तु उन क्रियाओं में विचार-शक्ति तथा सुख दुःखों का अनुभव करना सिद्ध नहीं होता / जिस प्रकार अनेक शाकों के भाजनों में दर्वी (कडछी) भ्रमण तो करती है परन्तु उन पदार्थों के रस के शान से वह वंचित ही रहती है, कारण कि-वह स्वयं जड़ है / इसी प्रकार घड़ी जनता को प्रत्येक समय का विभाग करके तो दिखलाती है, परन्तु स्वयं उस ज्ञान से वंचित होती है। अतएव जीव की सिद्धि जो सूत्रकार ने चार लक्षणों द्वारा प्रतिपादन की है वह युक्तियुक्त होने से सर्वथा उपादेय है। जैसेकि-जिस को प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान है, जिस की श्रद्धा दृढतर है, फिर जो सुख वा दुःख का अनुभव करतां दृष्टिगोचर होता है, उसी की जीव संज्ञा है / इस से निष्कर्ष यह निकला कि-उपयोगलक्षण युक्त जीव प्रतिपादित है। अव सूत्रकार जीवद्रव्य के लक्षणान्तरविषय में कहते हैं। नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा / वीरियं उपयोगो य एमं जीवस्स लक्षणं // 11 // उत्तराध्ययनसूत्र अ.२८ गा. // 31 // वृत्ति-ज्ञानं ज्ञायतेऽनेनेति ज्ञानं च पुनदृश्यतेऽनेनेति दर्शनं च पुनश्चरित्रं क्रिया चेष्टादिकं तथा तपो द्वादशविधं तथा वीर्य वीर्यान्तराय क्षयोपशमात् उत्पन्नं सामर्थ्य पुनरुपयोगो ज्ञानादिपु एकाग्रत्वं एतत् सर्व जीवस्य लक्षणम् // भावार्थ-जिस प्रकार 10 वी गाथा में जीव द्रव्य के लक्षण प्रतिपादन किये गए हैं. उसी प्रकार 11 वी गाथा में भी जीव द्रव्य के ही लक्षण प्रतिपादित हैं / जैसेकि जिसके द्वारा पदार्थों का स्वरूप जाना जाय उस का नाम शान है तथा जिसके द्वारा पदार्थों के स्वरूप को सम्यग्तया देखा जाय उस का नाम दर्शन है / सो जीव ज्ञान, दर्शन तथा काय की चेष्टादि की जो संज्ञा चारित्र है उस से तथा द्वादशविध तप से युक्त है / इतना ही नहीं किन्तु वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम भाव से जो आत्मिक सामर्थ्य उत्पन्न हुआ है उस वीये से युक्त तथा ज्ञानादि में एकाग्र अर्थात् ज्ञानादि में उपयोग युक्त है। ये सब जीव द्रव्य के लक्षण है। अर्थात् इन लक्षणो द्वारा ही जीव द्रव्य की सिद्धि होती है क्योंकि-लक्षणों द्वारा ही पदार्थों का ठीक 2 बोध हो सकता है। परन्तु इस बात का अवश्य ध्यान कर लेना चाहिए कि-एक श्रात्मभूत लक्षण होता है दुसरा अनात्मभूत लक्षण होता है / जिस प्रकार अग्नि की उष्णता आत्मभूत लक्षण है, ठीक उसी प्रकार दण्ड पुरुष का अनात्मभूत लक्षण है। सो ज्ञान. दर्शन, वीर्य और उपयोग इत्यादि यह सब आत्मभूत जीव द्रव्य के लक्षण प्रतिपादन किये गए है।