SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 136 ) के बाद अाहारादि लेवे तो दोष / 2 मक्खिय (म्रक्षित) सचित्त पानी श्रादि से हाथ की रेखा या वाल जिसके गीले हों उस के हाथ से आहारादि लेवे तो दोष। 3 निक्खित्त (निक्षिप्त) असूजति (अचित्त) वस्तु ऊपर सूजति (सचित्त) पड़ी हो वह लेवे तो दोष / 4 पिहिय (पिहित) सूजति (निर्दोष) सचित्त से ढांकी हो वह लेवे तो दोष / 5 साहरिय (संहत) अयोग्य वस्तु जिस वासण (भाजन ) में पड़ी हो वह वस्तु दूसरे वासण में डाल कर उसी वासण से जो योग्य आहार देवे तो दोष / या जहां पश्चात्कर्म होने की संभावना हो अर्थात् एक भाजन से दूसरे भाजन में आहारादि डाल कर दे उसमें से सचित्त पानी से धोने की शंका होने पर उसी भाजन से आहारादि लेवे तो दोष / दायग (दायक)-अंधा, लूला, लंगडा आदि यत्नपूर्वक नहीं वहराता (देता) हो तो दोष / 7 उम्मीसे (उन्मिश्र) मिश्र चीज़ लेवे तो दोष 8 अपरिणय (अपरिणत) जो वस्तु पूर्णतया प्रासुक न हुई हो उसे ग्रहण करे तो दोष / हलित्त (लिप्त) तुरंत की लीपी हुई जगह हो उसका उल्लंघन करके श्राहारादि लेवे तो दोष / 10 (छड्डिय) (छर्दित) जिस असनादि में से बिन्दु गिरते हों वह लेवे तो दोष ! यह सर्व मिलकर 42 दोष होते हैं। साधु इन दोषों से रहित आहार पानी ग्रहण करे। जव श्राहार पानी लेकर भाजावे तव आहार (भोजन) करते समय पांच दोष लग जाते हैं उनसे अवश्य वचना चाहिए / जैसेकि-१ दोषसंयोजना दोष-सरस वस्तुओं का संयोग मिलाकर खाना 2 अप्रमाणदोष-प्रमाण से अधिक भोजन करना 3 अंगार दोप-राग से भोजन करना यह इसीका अंगार दोष है 4 धूम दोप-यदि इच्छा के प्रतिकूल भोजन मिल गया हो तो उस भोजन की निंदा करके भोजन करना उसे धूमदोष कहते हैं 5 अकारण दोप-विना कारण अथवा विना आवश्यकता खाना / उक्त दोषों से रहित आहार पानी का ग्रहण करना उसे एषणासमिति कहते हैं। ४ादानभांडमात्रनिक्षेपणासमिति-साधुओं के पास धर्म साधन के निमित्त जो उपकरण होते हैं उनको यत्नपूर्वक उठाना ओर रखना उसका नाम आदाननिक्षेपण समिति है क्योंकि-जब यत्न से रहित होकर कोई कार्य किया जावेगा तव जीव हिंसा होने की संभावना रहती है। द्वितीय जव रखते वा उठाते समय सावधानता ही न रहेगी तब प्रमाद की आदत पड़ जाएगी जिससे फिर प्रत्येक कार्य में विघ्न पड़ जाने का भय बना रहेगा। ५उच्चार प्रश्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिष्टापनिकासमिति-पुरीपोत्सर्ग, (पाखाना) मूत्र, निष्टीवन, (मुख का मल) नाक का मल, शरीर का मल, जव उक्त पदार्थों के गिरने का समय उपस्थित हो तब सावधान होकर उक्त पदार्थों
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy