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________________ ( 134 ) आहाकम्मुद्दोसियं पूईकम्मे य मीस जाए य / ठवणा पाहुडियाए पात्रोअर काय पामिच्चे // 1 // परियट्टिए अभिहडे उब्भिन्ने मालोहडे इय। अच्छिज्जे अणिसिठे अज्झोयरए य सोलसमे // 2 // अर्थ-१ अहाकम्मे (आधाकर्मी) साधु के निमित्त बनावे तो दोष / 2 उद्देसियं (औद्देशिकं) जिस साधु के लिये आधाकर्मी आहार बनाया है। यदि वही साधु ले तो उसको आधाकर्मी दोष लगे / और दूसरा साधु ले तो 'उद्देसियं दोष लगे। 3 पूईकम्मे (पूतिकर्म) निर्दोष आहार में हज़ार घरों के अन्तर पर भी प्राधाकर्मी आहार का अंशमात्र भी मिल जाय तो दोष 4 // मास जाए (मिश्रजाते) अपने और साधुके वास्ते इकट्ठा आहार वनावे,साधु वह ले तो दोष 5 ठवणा (स्थापना) साधु निमित्त असनादि आहार स्थापन कर रखे, दूसरे को न दे तो दोष / 6 पाहुडियाए (प्राभृतिका) साधु के अर्थ पावणा (अतिथि-महमान) का भोजन भागे पीछे करे तो दोष / 7 पात्रोअर (प्रादुष्करण) अंधकार में प्रकाश करके देवे तो दोष / 8 कीय (क्रीत) साधु निमित्त आहार वस्त्र और पात्र आदि तथा उपाश्रय खरीद कर देवे तो दोष / 1 पामिच्चे (अपमित्य) साधु निमित्त श्राहार उधार लाकर देवे तो दोष / 10 परियट्टिए (परिवर्तितं)-साधु निमित्त अपनी वस्तु देकर बदले में दूसरी वस्तु लाकर देवे तो दोष, 11 अभिहडे (अभिहृतं) सन्मुख लाकर श्राहारादि देवे तो दोष अर्थात् जिस स्थान पर साधु ठहरे हुए हैं उस स्थान पर ही श्राहारादि लेकर चला जावे और साधु उसको ले लेवे तो वह 'अभिहत दोष होता है। 12 उन्भिन्ने (उद्भिन्नं) लेपनादिक (छांदा) खोल कर देवे तो दोष 13 मालोहडे (मालापहृतं) पीढा नीसरणी लगाकर ऊंचे नीचे तिरछे से वस्तु निकाल कर देवे तो दोष / 14 अच्छिाजे (अच्छेध) निर्बल से सवल जवरदस्ती दिलवाए या छीन कर देवे तो दोष / 25 अणिसिट्टे (अनिसृष्टं) दो के अधिकार की वस्तु एक दूसरे की स्वीकृति विना देवे तो दोप / 16 अज्झोयरए (अध्यवपूरक) जवकि साधु सायंकाल के समय पधार गए तव उनको पधारे हुए जानकर जो अपने लिये अन्न पानी बनाया जारहा था उसको अधिक कर देना इस विचार से कि-साधु जी महाराज भी इसी में से आहारादि लेजाएंगे 'ऐसा करेतो दोष, इस प्रकार सोलह उद्गम दोषों का वर्णन किया गया है / अव सोलह उत्पाद दोपों का वर्णन किया जाता है जो रसों का लालची वनकर साधु स्वयं लगाता है / जैसेकि धाई दुई निमित्ते आजीववणीमगेतिगिच्छाय / कोहे माणे माया
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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