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________________ ( 100 ) भवइ निरणत्तंगच्छइ तंजहा-आयाराविणएणं 1 सुयविणएणं 2 विखेवणा विणएणं 3 दोसग्निघायणाविणएणं // 4 // अर्थ-आचार्य स्वकीय शिप्यको यह वक्ष्यमाण चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति सिखाकर निर्ऋण होजाता है जैसेकि-आचार विनयर श्रुतविनय 2 विक्षेपणा विनय 3 दोषनिर्यातना विनय 4 // साराश-इस सूत्र का यह मन्तव्य है कि-श्राचार्य अपने शिष्य को चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति (पाचारण ) सिखलाकर निर्ऋण हो क्योंकि-जिस प्रकार पुत्रको धार्मिक और विद्वान् वनाना मातापिताका कर्तव्य है उसी प्रकार आचार्य का यह मुख्य कर्तव्य है कि-अपने शिप्यको चार प्रकार की विनय की प्राचरणता सिखलाकर निर्ऋण हो। इस कथन से यह भी सिद्ध होता है कि यदि प्राचार्य शिप्यको विनय शिक्षा नहीं देगा तो फिर वह शिष्य का ऋणी रहेगा इसी वास्ते सूत्रकार ने यह शब्द देदिया है- किचार प्रकार की विनय शिक्षा देकर आचार्य ऋणमुक्त होसकता है यथाः-आचार विनय 1 श्रुतविनय 2 विक्षेपणा विनय ३दोषनिर्घातना विनय 4 प्रथम आचार विनय इसलिये कथन किया गया है कि-आचरण की शुद्धि हो जाने पर ही श्रुतादि विनय सफलता को प्राप्त हो सकती है यदि सदाचार से रहित है तो फिर उसके श्रुतादि विनय भी कांतिहीन होकर लोक में उपहास का कारण बन जाते हैं तथा सदाचार से हीन व्यक्ति को फिर अपनी प्रतिष्ठादिके भंग के भय से श्रुतादिकी भी अविनय करनी पड़ती है। अब सूत्रकार प्रथम आचार विनय के भेदों विषय कहते हैं:-- सेकिंतं आयार विणए आयारविणए चउन्विहा पण्णत्ता तंजहा-संजम सामायरियावि भवइ 1 तवसामायरियावि भवइ 2 गणसामायरियावि भवइ३ एकल्लविहार सामायरियावि भवइ 4 सेतं आयारविणय // 1 // अर्थ-(प्रश्न ) हे भगवन् ! श्राचार विनय किसे कहते है ? (उत्तर) हे शिष्य ! श्राचार विनय चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसे किसंयम समाचारी का ज्ञान प्राप्त करना 1 तप समाचारी के ज्ञान को प्राप्त करना 2 गण समाचारी की योग्यता प्राप्त करना 3 और एकत्व विहारी के गुणों का वोध प्राप्त करना 4 / यह प्राचार विनय के भेद हैं / साराश-शिप्य ने प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! आचार विनय किसे कहते है और उसके कितने भेद प्रतिपादन किये गये हैं ? गुरु ने उत्तर में कहा कि हे शिष्य ! स्वयं शुद्ध आचार का पालन करना और अन्य आत्माओं के प्राचार को ठीक करना इसी का नाम आचार विनय है परन्तु इस के मुख्य चार भेद हे
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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