________________ सुयं मे पाउस तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवतेहिं अठविहा गणि संपया पण्णत्ता / / अर्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने उस श्री भगवान् को इस प्रकार प्रतिपादन करते हुए सुना है कि इस जिनशासन में स्थविर भगवंतों ने आठ प्रकार की गणि ( आचार्य) संपत् प्रतिपादन की है। __उक्त वचन को सुनकर शिष्यने प्रश्न किया / अब इस विषय में सूत्रकार कहते हैं। कयरा खलु अठविहा गणिसंपया पण्णत्ता / अर्थ-शिष्य ने प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! कौनसी पाठ प्रकार की गणि संपत् प्रतिपादन की गई है ? शिप्य के प्रश्न का गुरु उत्तर देते हैं। अव सूत्रकार इस विपय में कहते हैं। इमा खलु अठविहा गणिसंपया पएणत्ता तंजहा अर्थ-गुरु कहते हैं कि हे शिष्य ! श्राउ प्रकारकी गणिसंपत् इस प्रकार प्रतिपादन की गई है जैसे कि अव सूत्रकार आठ संपत् के नाम विषय में कहते हैं। आयार संपया 1 सुय संपया 2 सरीर संपया 3 चयण संपया 4 वायणा संपया 5 मइ संपया 6 पोग संपया 7 संगाह परिणाम अठमा // अर्थ-आचार संपत् 1 श्रुतसंपत् 2 शरीर संपत् 3 वचन संपत् 4 वाचना संपत् 5 मति संपत् 6 प्रयोग संपत् 7 और संग्रह परिज्ञा // 8 // अव सूत्रकार आचार संपत् के विपय में कहते हैं। सेकिंतं आयार संपया ? आयार संपया चउबिहा पएणत्ता तंजहासंजम धुवजोग जुत्ते यावि भवइ 1 असंप्पगाहिऽप्पा 2 अणिययवत्ती 3 बुढि सीलेयावि भवइ 4 / सेतं आयार संपया। अर्थ-शिप्यने प्रश्न किया कि हे भगवन् ! आचार संपत् किसे कहते हैं ? इसके उत्तर में गुरु कहने लगे कि हे शिप्य! आचार संपत् चार प्रकार की वर्णन की गई है जैसे कि-संयम में निश्चल योग युक्त होवे 1 प्राचार्य की आत्मा अभिमानरहित होवे 2 अनियतविहारी होवे 3 चंचलता से रहित वृद्धों जैसा स्वभाव होवे 4 यही आचार संपत् के भेद हैं। सारांश-प्रथम संपत् सदाचार ही है। जो आत्मा अाचार से पतित हो गया है वह आत्मिक गुणों से भी