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________________ AC-IXEEEEEEEEF सम्मानन रा सकती है पाप भूत तार पदार्थतनकीगत्पत्रि में कारप भूत सपनेंगे सड़ता गुणहोने से। सेविकपमा परोपप्पी तत्व से शरीर की मस्पियों पर गौ 2 गत सता से घिर पम गया। अग्नि ततसे जठराप्ति सत्पम्नामा "पायु तत्व से भासपास होगपा और 5 भाकाय वाल से शरीर में प्रकाश मारा / प्रब बतताइए पैतम्प सहाकिस तस से उत्पए मानी जाए। क्योकि पाच भूत तो साता गुशवाहास हिपे मामा का प्रभाष मानना पा पाच भूतों से उत्पच मा मानमा पो भाष को प्रमाण प माममा मात्र मतप है। परिचा कामाय किशिस प्रकार पड़ी (रा) समय सतसाती ठीक समप पर ही मेरा पता ठीक उसी प्रकार पाच भूतों से बम्प शादिमी सत्पन हो सकती है। इस शंका समापान में कहा जावा किया रान्त विषम मा माननीय पही। क्योंकि पातो पड़ी का पत्तो कोई तम्प मिठीप पड़ीने पीक समप तो जाता दिया परन्तु रस का समान नहीं / परि का बाप कि उस समय पड़ी को मीसामोपड़ी से पूरे गाने पर कि ने कितने पर बसाए पापा सत्तर ममान करेगी। पदि पड़ी से पाहामाप कि परि तुम बोस पी सकती हो तो तुम द्वितीय पारदी पैरा पा से तो स्पा पड़ी र क्रियाएं करत पण जापगी ! महीं / प्रता सिर मा कि बेतन की पत्ति में पड़ी प्राराम्स कार्य सामा / इसी प्रकार फोनोग्राफ उपा बोहो पाने सिनेमा PHERE / EDEESERane
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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