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________________ rano-xx-- wwXXXnxxaoxTRAMAIRMAN ( 76 ) यह बात भी भली प्रकार प्रसिद्ध है कि जब अहिंसावादियों का चल वा राज्य होता है तव हिंसक जन अपने आप शान्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं किन्तु वहुत से अधर्मी | जन भी प्राय. धर्म से जीवन व्यतीत करने वाले बन जाते हैं। यह सब अहिंसा भगवती का ही माहात्म्य है क्योंकि जव अन्यायशील व्यक्तियां न्याय शील शासन को देखती है, तब उनके मन में अन्याय शीलता के भाव इस प्रकार भागते हैं जिस प्रकार रवि किरणों से अन्धकार भाग जाता है। अतएव निष्कर्ष यह निकला कि अहिंसामय शासन ही जनता के लिए सुखप्रद हो सकता है। __ अब इस स्थान पर यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि यदि किसी व्यक्ति ने त्रस प्राणी के वध करने का परित्याग कर दिया तो फिर किसी समय पृथिवी श्रादि के आरभ // करते समय उससे यदि किसी त्रस प्राणी की हिंसा होजाए है तो क्या फिर उसका नियम ठीक रह सकता है ? इस शका के समाधान में भगवती सूत्र में इस प्रकार से लिखा है कि समणोवासगस्सणं भंते / पुयामेव तसपाणसमारंभे / पञ्चक्खाए भवति पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवइ से य पुढवि खणमाणेऽएणयरं तसं पाण विहिंसेजा से णं भंते / तं वयं अतिचरति / णो तिणहे समठे / नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति / समणोवासयस्सणं भते / पुन्यामेव वणस्सइसमारंभे पच्चक्खाए से य पुढविं खण। __ माणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिदेज्जा से णं भंते / HERE xxxIEXPERXXREKARKESAKARIEXI EXEXKAXMLonxxxxxxwwwxxxxxx Xxx
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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