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________________ समजाममा ( 5 ) __ पाठक जमों को पामसी मावि विपितो गया रोगा जिस प्रकार प्रारमपार और कर्मचारका सविस्तरपर्यन और न मादिस्य में मिलतास प्रकार किसी भी क्षेमेतरप में पज पिषय पटकप से पर्पन नही किया गया / मासे सोग इस प्रकार से करा पर कि जिस प्रकार सेम पिपे जात ही पसी प्रकार समका फस मी मोगले र में माता सोपा मी तप तक ती का किया मावा, अपतकमहति स्थिति अनुमाग प्रदेश-स्पादिकमी के मेरों कोमधिगत नाही किया गया। पारस किमौका पम्प भाग्मा के राग मेष के मानों पर ही भवमपित, भात निस प्रकार के तीन मंद भास प्रकारचे पम्प या एमबम प्रहादियों का मोबावा। भता जिस प्रकार से कम किपे गपेपस प्रकार से मी मोग सफताप प्रकार से भी भोग सकता है। बारकि मारमा माचों मारा मोबी महरिपोका पाव : संक्रमण माना गया।जसेवियमकों का यम विपाक, 2 शुम पो त भयम विपाक प्रयम मों का गम पिपाष भाम कर्मों का प्रयम विपास। सपतुर्मगी में इस बात पर प्रकाराण पयामिर्म मास्मा मानों पर ही निर्मापतेरस कि पहले और बर्ष मंग में वो कोई विचार दी / पितु बोरिवीप और वतीय मा भाप विचारतीय / जैसे कि-२ यम कमी का मयम विपार और मम फी का राम विपासान दोनों प्रगा कपन करने का सारा इसमा दीकि रामादिगम कर्म करके फिर पमानापादिकरम सग साना-पारिरिपानों REEEEEEEEER SEEEE मन
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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