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________________ PRELIGEEXXXTERaaca BEBEEen विश्पपीम्पपस्पा में इप्पा का पाल वा स्पान / पेसी बया में वर्षमान पेसाप मामलामाशमान समा यहि-संगत नदी / मनुप्प अपने जीपन की माखिरी पड़ी तक ऐसीही पाशियपरताना मिस स कि मपना, मला दो। पर नहीं कि ऐसा परने पास सब भाती स्व: Pपन भाग पाये हुये स्थिर पिपशान्त प्रहापाम् योगी / मी इसी विचार से मपने सापम का सिय करने पीपरा में लगे होते किस जन्म में नही वो इसरे में ही सही पिसी / समय म परमात्मभाव को प्रारमे। इसके सिवाय समी के पित्त में पा फराएमा फरतीकि परापर, कापमरंगा / शरीरमाश होने के पश्चात् तमका मस्तित्व म माना गाय तो म्पषित का गोस्प पिठमा संकुषित पन। जाताभीर कार्यप भी कितना प्रम्प पगावामीरों के लिये दो किया साप परम परमपमे लिये किये जाने वाले कामों के बराबर हो नहीं सकता। बेवन की उत्तर मपदाकोपमान म्हिमारक मामले सेप्पक्ति को महत्वाकांक्षा पसरासे बोर देनी पड़ती है। इस अम्म में ही तो भगरे सम्म में भी सही। परंतु में पपना गरेप अपत्य सिय काँगा पर मावना मनुषो केपप में जितना पा प्रमटा सकतीतमा पर मम्प कोई मावना नही मकरा सकती। पामी नहीं कहा जा सकता विपसमापना मिप्पास्पोकिसका भाधिौष मसर्गिक मीर सर्वपिडित विकास पाप मोदी मीतिक रचनामों को पंचकर सर तपो पर पड़ा किया गया हो पर सपा विपय वेतन मी बम साता है। इन सब बातों पर ध्यान देने से परमान कियाप्रमपात 23FEEEEEन
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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