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________________ SEEEEEEEEERED ( 18 ) H सावपकीभपस्पामे उसमापामेसनामेएम्प प्राप्त कर लिया किरपिम निरी फासेश के एक फेसोको स्वीकार करना पड़ा। कि कामे मे फेसो पद के मार्थियों में भी रम परापर बात || मही।तरावर्ष की अवस्था में धोरणनि कम से कम ! तेगमापामों पर पूर्व अधिकारसमा किया था।सम् 18 : में जम्मी एकताकी में सन् 15... मैपशव की भव: स्पा में कमाउकतिष शिप पे उसकी मावापनानुसार बापांच वर्ष की पय में कई चोटी मोरी कविताएं पमा सेठी पी। उसकी सिषीका कविताएं मारानी विरोरिपा के पाम मी पाँपी पी। उस समय उस पालिका का भप्रेमी पान मी मार्यममा पा पाकातीपी फिमें अंग्रेजी पड़ी। नहीं परन्तु मानती हैं। रफ बारिषों पर पान देने से पा स्पर ग्राम पड़ता किस सम्म में देवी पाने बासी सप विसषयवाएं न तो पर्चमान अाम की रुति के ही परिणाम मास माता पिवाफेवल संस्कार के और नया परिस्थिति के दी। इसभिपे मारमा 2 मस्तित्व की मापा को मर्म के Mभारंम समप से और भी पूर्व मानना चाहिए 1 बी पूर्ण समस्याला पूर्व सम्म में इगा पा प्रातिशारा यो संस्कार संचित / परमी के पापार पर पपुंज कामों का तथा वित सपनामा का ससगत समापाम हो जाता है। जिस प्रतिसे पा पूर्वजन्म सिसमा उसी के पस से भोक पूर्वजन्मबी परम्परा सियोशाती।स्पोकिअपरिमित माधिप सम्म भर सका फस महो सकता। इस प्रकारमारमा REEमान्य
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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